Saturday 28 December 2013

देश की भाषाओं की शक्ति और श्रेष्ठता पहचानने की जरूरत


देश की भाषाओं की शक्ति और श्रेष्ठता
पहचानने की जरूरत

भाषाएँ जनसंवाद की माध्यम हैं, सामाजिक-आर्थिक विकास की संवाहक हैं और इसके साथ ही इनमें समाज और संस्कृतियों को निकट लाने और उनमें एकात्मता के भाव भरने की भी अद्भुत ताकत है. इनकी इस ताकत को विकास एवं सामाजिक समन्वय के अन्य घटकों अथवा कारकों से कम नहीं आंका जा सकता. भारतीय समाज की अनेक विशेषताओं में यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि हमारा यह समाज बहुभाषिक भी है. किंतु अपनी भाषाओं की इस ताकत का सदुपयोग हम नहीं कर पाये हैं.
भारतीय भाषाओं की शक्ति और श्रेष्ठता की पहचान कर पाने में हमारी विफलता भी हमारे विकास की गति को अवरुद्ध कर रहा है. केंद्र सरकार और राज्यों के बीच भी संपर्क भाषा अंग्रेजी को बना दिए जाने से निजी क्षेत्र और वाणिज्य-व्यापार के क्षेत्र में भी अंग्रेजी ही संपर्क भाषा बन गई है. 
यह तथ्य है कि समर्थकों की ताकतवर लॉबी होने और पिछले सवा सौ वर्षो से सत्ता का समर्थन प्राप्त होने के बावजूद अंग्रेजी भी आज तक हमारे देश में सर्वव्यापक’ नहीं बन पाई. लेकिन एक सच्चाई यह भी है हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी अथवा अन्य दूसरी भारतीय भाषा में भी सर्वव्यापकता एवं सर्वग्राह्यता का अभाव है. 
भाषाएँ जितनी समृद्ध होती हैं, उनका समाज उतना ही सुसंस्कृत, गतिमान और सशक्त होता है. भाषा की समृद्धि उसकी ग्रहणशीलता पर निर्भर होती है. एक भाषा जब अन्य भाषाओं के शब्द और गुणधर्म ग्रहण करती है, तभी वह सर्वसामान्य के लिए स्वीकार्य बनती हैं. साथ ही उसमें सर्वव्यापकता के गुण भी आते हैं. ऐसी सर्वव्यापक भाषाएँ ही समाज या राष्ट्र के प्रत्येक वर्ग के साथ सफल संवाद स्थापित कराती हैं और समाज या राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के लाभ तीव्र गति से सामान्य जन तक भी पहुँचाती हैं.
भाषा की सर्वव्यापकता, उसकी ग्रहणशीलता के मामले में अंग्रेजी को इसका उदाहरण माना जा सकता है. समस्त यूरोपीय और एशियाई भाषाओं की शक्ति ग्रहण कर उसने अपने को इतना समृद्ध बनाया है कि आज वह पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति का वाहन बन विश्व भर में छा गई है और हमारे देश की अस्मिता पर कुंडली जमा कर बैठ गई है. इस कारण हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी समेत भारत की सभी पंद्रह राजभाषाएँ पंगु ही बनी हुई है. यही कारण है कि देश की तीन-चौथाई जनता देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभा पाने से अभी तक वंचित हैं. भाषाओं को समृद्ध, सर्वग्राह्य और सर्वव्यापक बनाने के लिए भाषा समन्वय’ एक सशक्त मार्ग है. भाषा समन्वय की यह अवधारणा देश की संस्कृति को गतिमान बनाने तथा राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ आर्थिक-सामाजिक विकास को भी तीव्रतर करने में सहायक होगी. 
भारत में हिन्दी समेत पंद्रह राजभाषाएँ हैं, जिनका अपना समृद्ध साहित्य भंडार है. इन भाषाओं को बोलने वालों की संख्या भी करोड़ों में हैं. भौगोलिक, सामाजिक और धार्मिक जैसी अनेक परिस्थितियाँ हैं, जिनके कारण ये सभी भाषाएँ एक दूसरे के काफी करीब भी हैं. यदि इन सभी भाषाओं को एक दूसरे की शक्ति हासिल हो जाए तो ये अपने आप समृद्ध हो ही जाएँ और सर्वव्यापकता का गुणधर्म में भी इनमें समा सकती है. इसके साथ ही अंग्रेजी का सशक्त विकल्प भी ये बन सकती हैं. लेकिन इसके लिए समन्वय की एक आधारशिला’ तैयार करने की जरूरत है. क्या यह संभव नहीं है?हमारा विश्वास है कि यह संभव है और ऐसा हो सकता है. जरूरत होगी- एक साधारण सी ईमानदार कोशिश की. आखिर स्वयं हिन्दी भी और उर्दू भी- ऐसे ही समन्वय की ही तो उपज हैं. हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाएँ इसी समन्वय की प्रक्रिया का हिस्सा बना दी जाएँ, अर्थात इनकी शक्ति के समन्वय का सुनियोजित प्रयास शुरू किया जाए तो ये सभी भाषाएँ न केवल सर्वव्यापी और सर्वग्राह्य बन जाएंगी, बल्कि इस सद्प्रयास के कुछ अन्य ऐसे परिणाम भी सामने आएंगे, जो हमारे देश की एकता और अखंडता को और अधिक मजबूत बनाएंगे, क्षेत्रीय असमानता दूर करने में सहायक होंगे और सभी प्रांतों के अलग अलग भाषा-भाषियों के बीच बेहतर संवाद भी स्थापित करेंगे. यह स्थितियाँ सामाजिक और सांस्कृतिक समन्वय को भी पुष्ट करेंगी. साथ ही व्यापार एवं व्यवसाय के विकास को भी तीव्र और स्वस्थ बनाएंगी.

अब प्रश्न यह उठता है कि भारतीय भाषाओं के समन्वय की प्रक्रिया और दिशा क्या हो, इसका मार्ग क्या हो? देश के बुद्धिजीवियों के लिए भाषायी समन्वय की प्रक्रिया, दिशा और मार्ग ढूंढ़ना और निर्धारित करना एक चुनौती है. इसके लिए विचार मंथन’ आरंभ करना जरूरी हो गया है. इस दिशा में सोचने की प्रक्रिया आरंभ होते ही जल्द ही कोई सुगम मार्ग भी निकल सकता है. भाषाओं के समन्वय का यह कार्य निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति कर सकेगा-1. सभी भारतीय भाषाएँ और अधिक समृद्ध होंगी, क्योंकि एक दूसरे का गुणधर्म और शब्दों को अपनाएंगी. इससे यह सभी सर्वव्यापक और सर्वग्राह्य बन सकेंगी,
2. देश के अलग-अलग प्रांतों के भाषा-भाषी मौजूदा संवादहीनता की स्थिति से उबर सकेंगे और भाषायी विद्वेष की भावना समाप्त होगी,
3. देश में एकात्मता की भावना सुदृढ़ होगी, सामाजिक सौहार्द बढ़ेगा और संस्कृति एवं परपंराओं का भी बेहतर समन्वय हो सकेगा,
4. क्षेत्रीय आर्थिक असमानता दूर करने में मदद मिलेगी और आर्थिक-सामाजिक व्यवहार में पैदा हो रही अड़चनें समाप्त होंगी. इससे देश का आर्थिक विकास तीव्र होगा एवं
5. भाषायी अवरोध के कारण आर्थिक उपलब्धियों के न्यायपूर्ण बंटवारे में जो व्यवधान होता है, वह समाप्त होगा. ये उपलब्धियाँ सभी समाज के निचले स्तर तक पहुँचेगी और व्यवसाय एवं व्यापार का दायरा बढ़ेगा.
अब भाषा समन्वय की दिशा, प्रक्रिया और मार्ग की पड़ताल भी हम करें. एक विचारणीय प्रारूप यह भी है-

1. राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार राष्ट्रीय भाषा समन्वय आयोग का गठन करें, जो राष्ट्रीय स्तर पर समस्त भारतीय भाषाओं के सामान्य व्यवहार के शब्दों का मानकीकरण कर दे और इन शब्दों को सभी भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त करने को बढ़ावा दे. दूरदर्शन एवं अन्य जनसंचार माध्यम इसमें सहायक बन सकते हैं.
2. सभी राज्य सरकारें, राज्य भर भी 
राज्य भाषा समन्वय आयोग’ का गठन कर भाषायी समन्वय’ के कार्य को गति प्रदान करें. राज्य सरकारें अपने पड़ोसी राज्यों की भाषाओं के साथ तालमेल बिठाने की प्रक्रिया को तीव्र बना सकती हैं.
3. देश के सभी राजनीतिक दल राष्ट्रीय एकता के लिए भाषाओं के समन्वय के महत्व को ध्यान में रख कर अपनी भाषा नीति में भारतीय भाषाओं के समन्वय’ की अवधारणा को शामिल करें.
4. सभी भारतीय भाषाओं के साहित्यकार, पत्रकार एवं अन्य क्षेत्र के बुद्धिजीवी अपनी भाषा समृद्ध बनाने और दूसरी भाषाओं से आत्मिक संबंध बढ़ाने के उद्देश्य से अपनी-अपनी रचनाओं में अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों, मुहावरों, कहावतों आदि को उदारता से स्थाना देना आरंभ करें एवं
5. सभी भारतीय भाषाओं के साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं अन्य संगठन भी भारतीय भाषाओं के समन्वय की दृष्टि से अपनी भाषा में अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों के प्रयोग को उदारतापूर्वक बढ़ावा दें.
हिन्दी सहित हमारी सभी प्रादेशिक भाषाओं में विपुल साहित्य रचे गये हैं. हमारे लेखकों, चिंतकों और कलाकारों ने अपनी मौलिक रचनाओं, अनुवादों, फिल्मों तथा रंगमंचों से सभी भारतीय भाषाओं को समृद्ध किया है. लेकिन यह सारी उपलब्धियाँ अंग्रेजी के मुकाबले हिन्दी सहित अन्य सभी भारतीय भाषाओं को कोई विशेष स्थान नहीं दिला पाया है.
अभी भी समय है कि हम हिन्दी समेत अपने देश की अन्य भाषाओं को जोड़ने की दिशा में गंभीरता से प्रयास करें और इन्हें समृद्ध बना कर अपनी सौ करोड़ की आबादी के स्वर को विश्वमंच पर शक्तिशाली बनाएँ.
अन्य भारतीय भाषाओं के विकास अथवा समन्वय के संदर्भ में न केवल शासकीय स्तर पर बल्कि जनसामान्य के स्तर पर भी संवादहीनता जैसी स्थिति है. यह स्थिति हमारी राष्ट्रीय एकता के लिए घातक तो है ही, हमारे सामाजिक-आर्थिक विकास का भी अवरोधक है. भाषा समन्वय की अवधारणा सभी भारतीय भाषाओं को समृद्ध, सर्वग्राह्य और सर्वव्यापक बना कर देश की एकता एवं अखंडता को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ आर्थिक-सामाजिक विकास को भी तीव्रतर करेगी. साथ ही अंग्रेजी का बेहतर विकल्प भी बन सकेंगी.
-कल्याण कुमार सिन्हा

Thursday 5 December 2013

भ्रष्ट चुनावी हथकंडों पर नकेल


भ्रष्ट चुनावी हथकंडों पर नकेल

चुनाव आयोग की सफल कसरत

-कल्याण कुमार सिन्हा 

पांच राज्यों छत्तीसगढ, मिजोरम, मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के विधानसभा चुनावों की चुनाव प्रक्रिया ने यह भरोसा दिलाया है कि देश मे लोकतंत्र को दूषित करने वाले चुनावी भ्रष्टाचार पर नकेल कसी जा सकती है और अब बाहुबलियों अथवा थैलीशाहों से राजनीति को मुक्ति दिलाना असभव नहीं है. इन चुनावों में देश की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियां, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी अपने चुनाव प्रचार के क्रम में एक दूसरे के विरुद्ध गडे मुर्दे उखाडने और एक दूसरे पर ओछे आरोप मढने में मर्यादाएं लांघने की मानो होड करते रहे. इस दौरान चुनाव प्रचार और सार्वजनिक बहस का स्तर गाली गलौज तक गिरता नजर आया. हालांकि इस बात से यह निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है कि सम्भवत: अभी यह समय नहीं आया है कि चुनाव अभियान फिलहाल बिलकुल ही साफ सुथरा हो सकता है. लेकिन इस तथ्य से भी इकार नहीं किया जा सकता है कि भारतीय चुनाव आयोग की पिछले तीन दशकों की सफल कवायद ने इस आशा की किरण को तो जगा ही दिया है कि अगले कुछ समय में देश की राजनीति बाहुबली अपराधियों एवं थैलीशाह धनपिशाचों के शिकंजे से अवश्य ही मुक्त हो जाएगी. 

वस्तुत: यह सफाई तो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने अपने कार्यकाल से ही आरंभ कर दिया था. चुनाव आयोग ने आदर्श चुनाव आचरण संहिता के पालन सुनिश्चत कर चुनाव अभियान की काले धन पर आधारित फिजूलखर्ची तथा प्रदूषण को दूर करने के लिए मौजूदा कानूनों के ही आधार पर अनेक सार्थक कदम उठाए हैं. इसके बाद पिछले कुछ वर्षो में सूचना के अधिकार वाले कानून का लाभ उठा कई साधारण लोगों ने दागी प्रत्याशियों को ही नहीं, अनेक दिग्गजों को भी बेनकाब किया और यह संकेत दे दिया कि उनका भरपूर समर्थन इस 'सफाई अभियान' को है. हवाला और अलग-अलग साधनों से चुनाव के लिए काले धन की आवाजाही पर भी रोक लगाने का काम प्रभावी साबित हुआ है. चुनावी भ्रष्टाचार दूर करने के आयोग के इन कदमों ने दुनिया भर मे हमारे लोकतंत्र को गौरान्वित किया है.
फिलहाल इन विधानसभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने एक कदम और आगे बढकर मीडिया को भी साधने का सफल उपक्रम भी किया है. प्रायोजित चुनाव सर्वेक्षणों के चैनलों पर प्रसारण और समाचार पत्रों में छपने वाले पेड न्यूज जैसे भ्रष्ट हथकंडों पर इस बार प्रभावी रोक भी नजर आई है. यह इतना आसान भी नहीं था. किसी भी लोकतांत्रिक देश मे सन्चार साधनों पर ऐसी नकेल साधारण बात नहीं है. लेकिन चुनाव आयोग का दायित्व है कि वह मतदाताओ के लिए स्वतंत्र एव निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित कराए. हालांकि इसके लिए उसके पास ऐसे बाध्यकारी अधिकार नहीं है कि वह राजनीतिक दलों को अपनी सीमा में रहने को बाध्य कर सके. और ऐसे बंधनों को आसानी से स्वीकार करना हमारे राजनीतिक दलों की फितरत में कहा है. उनके भ्रष्टाचार या आपराधिक आचरण पर न्यायपालिका शिकंजा कसता है तो यह दलील दी जाती है कि यह चुनाव आयोग का कार्याधिकार क्षेत्र है. जब आयोग हरकत में आता है तो वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने और चुनावों के जनतांत्रिक स्वरूप को नष्ट करने का संकट उत्पन्न करने के आरोपों की बौछार करना शुरू कर देते हैं. इतना ही नहीं, चुनाव आयोग या सूचना आयोग की बात तो दूर, सुप्रीम कोर्ट तक को यह सलाह (इसे उनकी ‘चेतावनी’ ही थी) दी जाती रही कि वह 'लक्ष्मण रेखा' का उल्लंघन न करे. दावा यह है कि कानून निर्मात्री संसद या विधायिका ही लोकतंत्र में संप्रभु है. विडंबना यह है कि ये कानून बनाने वाले यह समझने से स्वय कतराते रहे हैं कि संस्था की संप्रभुता व्यक्ति विशेष को हस्तांतरित नहीं हो सकती. साथ ही जनप्रतिनिधित्व कानून' को ढाल नहीं, ये तलवार बना कर भांजने से बाज नही आए. उनके यह सारे आचरण इस दौरान देखने को मिले.
आयोग के लिए सबसे बडी अड़चन या लाचारी यह है कि उसकी की दंड देने की क्षमता या अपने आदेशों को लागू करवाने की उसकी साम‌र्थ्य बहुत सीमित है. वह केवल राजनीतिक दलो को और उनके नेताओ को भाषणो मे सयम, शालीनता एव शिष्टाचार बरतने की ताकीद कर सकता है और न मानने पर उनकी भर्त्सना कर सकता है. राजनीतिक दलों को डर केवल इस भर्त्सना का इसलिए होता है कि मतदाताओं पर उसका विपरीत प्रभाव न पड जाए. इस चुनाव के प्रचार में काग्रेस को भाजपा ने जहरीला कहा तो कांग्रेस ने भाजपा को लुटेरा’ बता दिया. ऐसे अनेक मामले सामने आए. हर बार शिकायत ले, दोनों चुनाव आयोग से गुहार लगाते भी नजर आए. इसका उद्देश्य एक दूसरे को मतदाता की नजर में गिराना रहा. आयोग ने दोनों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया और जवाब पर नाराजगी भी जताई. इसमें आयोग की वह ताकत नजर आई, जो उसे देश के मतदाता से मिली है, किसी कानून से नहीं. इतनी कसरतों के साथ भारतीय चुनाव आयोग मताध राजनीतिक दलों को औकात में रखते हुए इन विधानसभा चुनावों की चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता बहुत हद तक कायम रख पाया है तो इसे देश और अपने दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र की सफलता के लिए शुभ संकेत माना जाना चाहिए.
-कल्याण कुमार सिन्हा
समाचार सम्पादक (सेवा निवृत), लोकमत समाचार
122/6 मित्र नगर, वेस्ट मानेवाडा रोड,
नागपुर 440027 (महाराष्ट्र).


कैसी है आप के बच्चे के मस्तिष्क की उर्वरता


कैसी है आप के बच्चे के मस्तिष्क की उर्वरता

शिशु में प्रतिभा की खोज : कौन सा कैरियर होगा उपयुक्त

क्या आप का बच्चा सचिन तेंदूलकर या विश्वनाथन आनंद बन सकता है, क्या वह आईएएस, आईपीएस या आईआरएस अधिकारी बनेगा, उसमें नारायण मूर्ति, रतन टाटा अथवा वारेन बफे बनने की योग्यता तो नहीं है, वह कोई बेस्ट सेलर राइटर या फिर कहीं वह पंडित नेहरु, वाजपेयी या फिर लालू प्रसाद तो नहीं बनेगा! आखिर आप को इसका पता कैसे चले? किसी ज्योतिषि के पास जाने से तो आप रहे. नये जमाने के आप जैसे लोग, भला पुराने जमाने के दकियानूसी तरीकों को कैसे तरजीह दे सकते हैं? आई-क्यू टेस्ट जैसे परीक्षण भी अब पुरानी बात हो चुकी है. तो चलिए, निश्चिन्त हो जाइए, अपने बच्चे के मस्तिष्क की उर्वरता के बारे में जानने की आप की दुविधा और परेशानी का हल अब निकल आया है. इसके लिए अब एक उन्नत कम्प्यूटर साफ्टवेयर आ गया है.
यह खबर आप को और चौंकाएगी कि भारत में आप की खोज का यह हल तो 2011 में आया, लेकिन शिशु की प्रतिभा का पता लगाने का यह अत्याधुनिक उपाय सन् 1990 में ही तायवान में विकसित कर लिया गया था और अमेरिका सहित आधी से अधिक दुनिया की सैर कर पूरे 21 वर्षों बाद यह तकनीक भारत पहुंचा है. अब तो यह गुजरात के मेहसाना और महाराष्ट्र के यवतमाल जैसे तीसरी-चौथी श्रेणी के शहरों के अभिभावकों के लिए भी सुलभ हो चुका है. इन छोटे शहरों के लोग भी अपने बच्चों के भविष्य और उनके कैरियर के बारे में बच्चों की दो-तीन साल की आयु में ही जान लेना चाहते हैं, ताकि वे आरंभ से ही संभावित कैरियर के अनुरूप अपने बच्चे को वैसा ही माहौल दे सकें. 

डीएमआईटी अर्थात डर्मेटोग्लीफिक्स मल्टीपल इन्टेलिजेन्स टेस्ट बच्चों के भविष्य की कैरियर अभिरुचि को पढ़ने और समझने में अभिभावकों की मदद कर रहा है. अपने बच्चों का भविष्य बनाने में अभिभावक कोई चूक नहीं चाहते. भविष्य जान लेने की ललक तो आम आदमी की पुरानी कमजोरी रही है. ब्रेन-की और ब्रेन वन्डर जैसे नामों से डीएमआईटी की दुकानें देश के हर छोटे-बडे नगरों में खुलने लगी है. 5 हजार रुपए की ‘मामूली’ सी फीस देकर दस मिनट के आसान से टेस्ट के विष्लेशण साथ यदि परिणाम की जानकारी मिल रही हो तो फिर कोई भला देर भी आखिर क्यों करे?

मुम्बई, पुणे, हैदराबाद, चेन्नै, बडौदा, दिल्ली, गुड़गांव आदि बडे नगरों के इन केन्द्र संचालको का दावा है कि प्रति माह सात सौ से एक हजार बच्चे उनके यहां टेस्ट के लिए लाए जाते हैं. अधिकतर बच्चे दो से पाच वर्ष के होते हैं. जबकि दस साल तक के बच्चों की तादाद भी कम नहीं होती. अहमदाबाद के निकट मेहसाना के एक केन्द्र संचालक का तो दावा है कि जब से उसने अपना केन्द्र आरम्भ किया है, उसने अब तक 1.2 लाख बच्चों से लेकर उम्रदराज लोगों तक का डीएमआईटी टेस्ट कर चुका है. उसका यह दावा भी है कि उसका सबसे कम उम्र का एक ग्राहक तो केवल नौ माह का ही था, जब कि बडे उम्र का ग्राहक था 59 वर्ष की आयु का. 

क्या है डीएमआईटी?

इस टेस्ट से बच्चे मस्तिष्क की क्षमता का पता चलता है. अभिभावक को इससे यह पता चलता है कि उनके बच्चे की देखने, सुनने और कुछ करने की क्षमता कैसी है? उसमें सीखने की क्षमता कैसी है? सूचना ग्रहण करने का उसका सार्म्थ्य कैसा है? मेधा शक्ति -अर्थात उसकी भाषाजन्य उर्वरता, गणितीय समझ, तर्क शक्ति, अभिव्यक्ति क्षमता, प्रलाप प्रेम, संगीत प्रेम, निसर्ग प्रेम, आग्रही अथवा दुराग्रही आदि प्रवृतियां कैसी है? यदि यह पता चला कि किसी की अभिव्यक्ति अच्छी है, किन्तु तर्क शक्ति कमजोर है तो माता-पिता उसकी यह कमजोरी दूर करने के उपाय समय रहते कर सकते हैं. इस परीक्षण के साथ ही केन्द्र पर अभिभावक और बच्चे को सम्बन्धित परामर्श भी दिया जाता है. इसके तहत शतरंज खेलने, दृश्य अवलोकन कराने, गीत-संगीत की चर्चा करने, घटनाओं पर मन्तव्य प्रकट करने, जिम ले जाने, बुरी आदतों से छुटकारा आदि के उपाय सुझाए जा सकते हैं. 

कैसे किया जाता है परीक्षण?

डीएमआईटी का परीक्षण एक उन्नत कम्प्यूटर साफ्टवेयर से सम्पादित होता है. इसके तहत हाथ की सभी दस उंगलियों का अलग-अलग परीक्षण होता है. यह साफ्टवेयर दाएं हाथ की उंगलियां मस्तिष्क के बाएं छोर और बाएं हाथ की उंगलियां मस्तिष्क के दाएं छोर से संबंधित मनोद्वेगों एव मनोभावों के परीक्षण करता है. जैसे इसमें अंगूठा हमारी तर्क शक्ति और आत्म-नियन्त्रण क्षमता की जानकारी देता है. इसी प्रकार अनामिका हमारी भाषाई सामर्थ्य और अभिव्यक्ति क्षमता के बारे में बताता है. हमारी सभी दस उंगलियां हमारे सम्पूर्ण मानसिक और शारीरिक क्षमता का परिचय देती है. यह हमारे व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को अभिव्यक्त करती है. इस साफ्टवेयर से हमारी इन उन्गलियों में छुपे हमारे आन्तरिक राज के प्रिन्ट विदेश स्थित लैब में विष्लेशण के लिए भेज दिए जाते है.

-कल्याण कुमार सिन्हा
समाचार सम्पादक (सेवा निवृत), लोकमत समाचार
122/6 मित्र नगर, वेस्ट मानेवाडा रोड
नागपुर 440027 (महाराष्ट्र).