Saturday 12 April 2014

राजनीतिक दलों को चंदा बांट रहे उद्योगपति, व्यापारी और धंधेबाज

राजनीतिक दलों को चंदा बांट रहे उद्योगपति, व्यापारी और धंधेबाज

लोकसभा चुनावों में मतदान का तीसरा चरण पूरा हो चुका है. प्रचार में पैसे का खेल खुल कर खेला जा रहा है. उद्योगपति और व्यापारी के साथ-साथ काले धंधों में लिप्त धंधेबाज दिल खोल कर राजनीतिक दलों को चंदा बांट रहे हैं. आखिर इतना चंदा देने के पीछे उनकी भी कई उम्मीदें होंगी. एक लगा कर चार कमाने की आशा में होंगे वे लोग. राजनीतिक दलों ने भी उनसे धन लेने के बदले कुछ न कुछ वादे जरूर किए भी होंगे. 
ऐसे में सन् 1974 की बात याद आती है. 
धनबाद जिले में जयप्रकाश आंदोलन के दौरान नवंबर महीने मेँ हम निरसा अनुमंडल मुख्यालय के निकट रामपुर पंचायत में "जनता सरकार" के बारे में जागरूकता अभियान चला रहे थे. वहीं पास के ही किसी एक गांव का एक लड़का परितोष भट्टाचार्य हमारे साथ चलता और आसपास के गांवों में ले जाकर लोगों से मिलाता. बांग्ला भाषी परितोष के स्थानीय होने से हमें उससे जनसंपर्क में काफी मदद मिल रही थी. एक दिन शाम को जब हम उसके गांव से ही होते हुए निरसा लौटने लगे तो उसने बताया कि उसके दादा जी कई दिनों से हमसे मिलने की इच्छा जता रहे हैं. हम तुरंत उसके साथ उसके घर पहुंचे. 
दादा जी करीब 60 वर्ष के रहे होंगे. वे हमें देख कर खुश हुए. जयप्रकाश बाबू, बातचीत में हमारे आंदोलन और हमारे अभियान के बारे में वे गहरी रुचि दर्शाते रहे. उन्होंने बताया कि वे भी वामपंथी आंदोलनों मे कभी सक्रिय थे. फिर उन्होंने बताया कि जवानी के दिनों में, जब अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चल रहा था, तब वे अपने हमउम्र साथियों के साथ महात्मा गांधी के अनुयायी हुआ करते थे और कांग्रेसी हुआ रते थे. झरिया में उन्हीं दिनों कांग्रेस की सभा थी. गांधीजी उस अधिवेशन में आ रहे थे. भट्टाचार्य महोदय ने बताया कि वे और उनके लगभग पंद्रह साथी निरसा से 40-50 मील पैदल चल कर झरिया पहुंचे थे. 
वहां सभा का बहुत शानदार पंडाल था. खूब भव्य इंतजाम था. गांधीजी से मिलने की उन सबों की इच्छा मुश्किल से पूरी हुई. गांधीजी ने पांच मिनट का समय दिया था. भट्टाचार्य महोदय ने बताया कि "परिचय और इधर-उधर की बातों के बाद मैंने तारीफ की कि सभा का बहुत बढ़िया और भव्य इंतजाम है, इसमें खर्च भी बहुत हुआ होगा, मैंने उत्सुकतावश गांधीजी से यह भी पूछ लिया कि इतने पैसे का इंतजाम कैसे किया आपने? गांधीजी गंभीर हो गए और जवाब दिया- मदन अग्रवाल और यहां के अन्य कोयला खान मालिकों ने यह सब इंतजाम किया है." 
भट्टाचार्य महोदय ने कहा कि इसके उपरांत मैंने गांधीजी के समक्ष अपनी सहज जिज्ञासा रखी- आप इन्हें इनके इतने पैसे लौटाएंगे कैसे?" उन्होंने बताया, "मेरे इस प्रश्न पर हमें लगा, गांधीजी नाराज हो गए थे. उन्होंने अपने सचिव महादेव देसाई से कहा, इनसे बात करो. और वे उठ कर वहां से चले गए. 
भट्टाचार्य महोदय ने बताया कि महादेव देसाई बड़े विनम्र थे. उन्होंने मेरी जिज्ञासा शांत करने के लिए कहा कि जब हम आजाद हो जाएंगे, तब इन्हें लौटा देंगे. 
भट्टाचार्य महोदय ने कहा कि उनके इस उत्तर से मेरा समाधान नहीं हुआ. गहरी सांस लेते हुए भट्टाचार्य महोदय ने कहा कि आजादी के बाद अब तक देश टाटा, बिड़ला और उन सारे पूंजीपतियों का कर्ज और उसका ब्याज देश चुकाते रहने को मजबूर है. उन्होंने कहा कि आपलोग कृपा कर जयप्रकाश बाबू से कहिएगा कि अब बहुत हो गया. इन पूंजीपतियों को अब और ब्याज देना बंद कराएं.
सन् 1975 के जनवरी में हमने बोकारो में जेपी की आमसभा आयोजित की थी. जेपी ट्रेन से बोकोरो पहुचे. दोपहर में हम उनसे मिले. उन्हें जनता सरकार संबंधी अपने अभियान की जानकारी दी. साथ ही भट्टाचार्य महोदय की बातें भी उनको बताई. जवाब में जेपी ने मुझसे पूछा- "आप सर्वोदय कार्यकर्ता हैं क्या?" मैंने जवाब दिया- नहीं. इसके बाद बातचीत का रुख बदल गया.
आज जब लोकसभा चुनावों में व्यापारियों और उद्योगपतियों से भारी मात्रा में चुनाव का चंदा सभी दल ले रहे हैं, तो भट्टाचार्य महोदय का वह प्रश्न मन में कौंधता है कि देश कब तक इन पूंजीपतियों का कर्ज और ब्याज चुकाता रहेगा?....
--कल्याण कुमार सिन्हा