Sunday 19 January 2014

भारत की खाद्य सुरक्षा योजना : एक नजर

भारत की खाद्य सुरक्षा योजना : एक नजर
-कल्याण कुमार सिन्हा

अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के साथ ही अब हम अपने लोगों को खाद्य सुरक्षा देने की बहुत बड़ी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं. दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी वाले हमारे देश के लिए यह गौरव की बात है कि आज हम दुनिया के सबसे बड़ा कार्यक्रम "राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा" आरंभ कर चुके हैं.
हाल के अनुभवों ने हमें सिखाया है कि राज्य के अनाज गोदाम इसलिए भरे हुए नहीं होना चाहिए कि लोग उसे खरीद पाने में सक्षम नहीं हैं. इसका अर्थ है कि सामाजिक सुरक्षा के नजरिये से अनाज आपूर्ति की सुनियोजित व्यवस्था होनी चाहिए. यदि समाज की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित रहेगी तो लोग अन्य रचनात्मक प्रक्रियाओं में अपनी भूमिका निभा पाएंगे. यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम देश के इसी सामाजिक सुरक्षा नजरिये का नतीजा है.
जुलाई 2013 में केन्द्र सरकार ने एक अध्यादेश के तहत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन शासित राज्यों - दिल्ली,, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के चुनिन्दा जिलों में आरंभ कर दिया था. खाद्य सुरक्षा विधेयक के संसद में पारित हो जाने के बाद 10 सितंबर से "राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013" देश भर में क्रियाशील हो गया है. इसके साथ महाराष्ट्र,, बिहार एवं अन्य राज्यों में भी यह इसी माह फरवरी 2014 से आरंभ हो गया है. उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार ने अब इसे आगामी 5 जुलाई से आरंभ करने की घोषणा की है. आरंभिक ना-नुकर के कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका के बाद उत्तर प्रदेश सरकार की यह घोषणा सामने आई है. किन्तु पश्चिम बंगाल की तृण मूल कांग्रेस की ममता बनर्जी सरकार ने अपने राज्य में इसे लागू करने में अभी तक कोई पहल नहीं की है. उसने आर्थिक कारणों से लागू करने में असमर्थता जताते हुए मामले को केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया है.
संसद ने गत वर्ष 2 सितंबर 2013 को ऐतिहासिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पारित किया था. 10 सितंबर से देश भर में लागू इस "राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013" के क्रियान्वयन पर वार्षिक 1,30,000 करोड़ रुपए खर्च का अनुमान है. इसमें देश की दो तिहाई आबादी सब्सिडी के अधिकार के तौर पर प्रदान करने का प्रावधान है. यह अधिनियम प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलोग्राम चावल, गेहूं और मोटा अनाज क्रमश: 3, 2 और 1 रुपए प्रति किलोग्राम के तयशुदा मूल्य पर गारंटी करेगा. देश की 82 करोड़ लोगों, अर्थात 67प्रतिशत शहरी एवं 80 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को फायदा मिलेगा.
इस महत्वाकांक्षी अधिनियम को विपक्षी दल केन्द्र में सत्तारूढ संप्रग की मुख्य घटक कांग्रेस की लगातार पिट रही साख को बचाने वाला एवं राजनीति का पासा पलट देने वाला मानते रहे. इसके साथ ही संसद से पारित होने देने में अड़ंगा भी लगाते रहे. लेकिन हाल में ही पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में से, चार राज्यों में कांग्रेस की लुटिया डूबने से बच नहीं सकी.
पूरा खाद्य सुरक्षा क़ानून पुराने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) पर निर्भर है. इस प्रणाली के बारे में हम आज तक देखते आए थे कि य सही कानहीं कर रही लेकिन अब हम उम्मीद कर सकते हैं कि व काम करेगी.
क्रियान्वयन में तकनीक का इस्तेमाल
इसमें दो बातें समझने वाली हैं. पिछले दो तीन सालों से तकनीक में काफी सुधार हुआ है. अब पीडीएस के रिसाव को रोकने के लिए तकनीकी का इस्तेमाल किया जा रहा है.
जब ट्रक गोदाम से चलता है तो एक एसएमएस से लाभार्थियों को पता चल जाता है कि उनका अनाज कहां तक आ गया है. तकनीक के बेहतर इस्तेमाल से पिछले दो तीन सालों में देखा गया है कि कई राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में काफी अधिक सुधार हुआ है. इसमें हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और उड़ीसा शामिल हैं.
आपूर्ति प्रणाली इतनी बेहतर हो गई है कि आज तमिलनाडु में शत प्रतिशत आपूर्ति की जा रही है जबकि छत्तीसगढ़ में यह आंकड़ा 90 प्रतिशत है.
आधार कार्ड के आने से दूसरे शहरों में काम की तलाश में जाने वाले लोग उस शहर में राशन पा सकते हैं. सुधार भी इस क़ानून में किया गया है.
सिटीजन चार्टर
नए क़ानून में शिकायत दर्ज कराने के लिए एक खास प्रणाली बनाई गई है. इसमें सिटीजन चार्ट का प्रावधान है. इसमें बताया गया है कि आपको कहां शिकायत दर्ज करानी है, उसके लिए कितने साल की सजा मिल सकती है. इसमें वह सभी प्रावधान किए गए हैं, जिनसे आपका क़ानूनी अधिकार आपको मिले.
लेकिन इससे बड़ी बात यह है कि मनरेगा में भी आय की गारंटी थी. अगर आपको रोजगार नहीं मिलता है तो आप उसको चुनौती दे सकते थे, लेकिन हम जानते हैं कि 100 के बजाए औसतन 54 दिन ही रोजगार मिला है.
गारंटी का औचित्य
तकनीकी के बेहतर इस्तेमाल से ज़रूरतमंदों तक खाद्य सुरक्षा कानून के फायदों को पहुंचाया जा सकता है., इसका मतबल है कि क़ानूनी गारंटी होने के बावजूद 100 दिन का रोजगार तो वहाँ भी नहीं मिला..
सोचकर चलना कि पीडीएस के माध्यम से 100 प्रतिशत डिलीवरी होगी, तो वह तो समय ही बताएगा कि कितना हो पाया..
इस अधिनियम में लोगों को पांच किलोग्राम चावल, गेहूं एवं मोटा अनाज क्रमश: तीन, दो और एक रुपए प्रति किलोग्राम की दर से हर माह प्रदान करने की गारंटी दी गई है. इस कानून में किसानों के हितों की रक्षा के लिए भी पर्याप्त प्रावधान किए गए है.
इस अधिनियम में एक अच्छी बात यह भी है कि इसमें मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे भारतीय जनता पार्टी की राज्य सरकारों द्वारा फिलहाल खाद्य सुरक्षा की इसी तरह की जो योजना चलाई जा रही हैं, उसे कानून के तहत संरक्षण मिलेगा.. भाजपा शासित इन दोनों राज्य सरकारों ने केन्द्र की संप्रग सरकार से बहुत पहले पिछले वर्ष ही अपने-अपने राज्यों में खाद्य सुरक्षा जैसी योजना सफलता से लागु कर चुकी है और दोनों सरकारें इसे बढ़िया से चला रही हैं. साथ ही देश में दिसंबर 2000से चल रही अन्त्योदय अन्न योजना भी जारी रहेगी, जिसमें गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को प्रति परिवार 25 किलोग्राम अनाज इन्ही दरों पर मिलते रहेंगे.
इस अधिनियम के कानून बनने के बाद भारत दुनिया के उन चुनिन्दा देशों में शामिल हो गया है, जो अपनी अधिकतर आबादी को खाद्यान्न की गारंटी देते हैं. 1,30,000 करोड़ रुपए के सरकारी समर्थन से खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है. इसके लिए करीब 6.123 करोड़ टन खाद्यान्न की आवश्यकता होगी.
केन्द्र सरकार की यह योजना राज्य सरकारों के माध्यम से लागू होगी. किसी कारण से अगर राज्य सरकार सस्ते दर पर अनाज मुहैया नहीं करवा पागी तो उसे गरीबों को खाद्य सुरक्षा भत्ता देना पड़ेगा. यह भत्ता कितना होगा, इसका फैसला राज्य सरकारें अपनी स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रख कर करेंगी. राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि अनाज के वितरण में किसी प्रकार की धांधली न हो. काला बाजारी को रोकने के सभी उपाय करने होंगे. सार्वजनिक वितरण प्रणाली में फैले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए भी हर जिले में प्रबंध करने होंगे. इस बात का भी प्रयास करना होगा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानें चलाने का जिम्मा प्राथमिकता के आधार पर पंचायतों, स्वयं सहायता समूहों और सहकारी समितियों को दिया जा. वैसे इसमें लोगों को होने वाली असुविधाओं को रोकने के लिए कॉल सेन्टर और हेल्प लाइन आरंभ करने का भी प्रावधान है. साथ ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली से जुड़े सभी दस्तावेज आम लोग यदि देखना चाहेंगे तो देख सकेंगे. यदि कोई अधिकारी विधेयक के नियमों का पालन नहीं करता तो उसे इसके लिए सजा का प्रावधान किया गया है. उन पर 5000 रुप तक जुर्माना किया जा सकेगा..
इस बात का भी प्रबंध किया गया है कि इस योजना का राज्य सरकारों पर कोई अतिरिक्त भार न पड़े. इसके लिए अनाज की ढुलाई के लिए राज्यों को केन्द्र सरकार से सहायता मिलेगी. राशन का वितरण करने वालों को भी आर्थिक सहायता दी जागी. खाद्यान्न सुरक्षा के मद में सरकार को लगभग 1.25 लाख करोड़ रुप के अनुदान का भी इसनें प्रावधान है, जो 2015-16 में बढ़ कर 1.50 लाख करोड़ हो जागा. इसके लिए सरकार को हर साल अपनी आमदनी में 10 से 15 फीसदी का इजाफा करना पड़ेगा. यह सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है, जिसे उसने स्वीकार किया है.
खाद्य सुरक्षा कानून की दस खास बातें... 1. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून की खास बात यह है कि खाद्य सुरक्षा कानून बनने से देश की दो तिहाई आबादी को सस्ता अनाज मिलेगा. मौजूदा वक्त में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को 7 किलो गेहूं 3 रुप प्रति किलो और चावल 2 रुप प्रति किलो के दर पर हर महीने मिलना है. इस एक्ट के अमल में आने के तीन साल बाद कीमतों में फिर से संशोधन किया जाएगा.
2. इससे अनाज की मांग 5.5 करोड़ मिट्रिक टन से बढ़कर 6.1 करोड़ मिट्रिक टन हो जाएगी. फूड सब्सिडी लागू होने पर सरकार के खजाने पर अतिरिक्त बोझ करीब 20,000 करोड़ रुप होगा. इसके लिए करीब 6.123 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी. फूड सब्सिडी बिल पर कुल फूड सब्सिडी कवर करीब 1.3 लाख करोड़ रुप होगा.
3. इस कानून के तहत देश की 67 फीसदी आबादी को हर महीने 5 किलो अनाज प्रति व्यक्ति के हिसाब से मार्केट से कम दाम पर दिया जाएगा. बिल में कहा गया है कि 3 रुप प्रति किलो के हिसाब से चावल और 2 रुप प्रति किलो के हिसाब से गेहूं और बाकी अनाजों को 1 रुप प्रति किलो के आधार पर देश की 75 फीसदी ग्रामीण आबादी और 50 फीसदी शहरी आबादी को दिया जाएगा.
4. इस स्कीम को आधार स्कीम के साथ लिंक्ड किया जाएगा. इसके तहत हर नागरिक को एक विशिष्ट पहचान नंबर दिया जाएगा, जो कि डाटाबेस से लिंक्ड होगा. इसमें हर कार्डहोल्डर का बॉयोमीट्रिक्स डाटा होगा.
5. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के अंतर्गत अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) के तहत आने वाले लगभग 2.43 करोड़ निर्धनतम परिवार कानूनी रूप से प्रति परिवार के हिसाब से हर महीने 35 किलोग्राम खाद्यान्न पाने के हकदार होंगे.
6. लोकसभा में दिसंबर, 2011 में पेश मूल विधेयक में लाभार्थियों को प्राथमिक और आम परिवारों के आधार पर विभाजित किया गया था. मूल विधेयक के तहत सरकार प्राथमिकता श्रेणी वाले प्रत्येक व्यक्ति को सात किलो चावल और गेहूं देगी. चावल तीन रुप और गेहूं दो रुप प्रति किलो के हिसाब से दिया जाएगा. जबकि सामान्य श्रेणी के लोगों को कम से कम तीन किलो अनाज न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधे दाम पर दिया जाएगा.
7. फूड बिल में संशोधन संसदीय स्थाई समिति की रिपोर्ट के अनुसार किए गए, जिसने लाभार्थियों को दो वर्गों में विभाजित किए जाने के प्रस्ताव को समाप्त करने की सलाह दी थी. पैनल ने एक समान कीमत पर हर महीने प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम अनाज दिए जाने की वकालत की.
8. संयुक्त राष्ट्र द्वारा परिभाषित गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या भारत में 41 करोड़ है. यह संख्या उन लोगों की है, जिनकी एक दिन की आमदनी 1.25 डॉलर से भी कम है.
9. कुछ राज्य सरकारों ने बिल को लेकर अपनी आशंका जतायी थी, राज्यों का कहना था कि प्रस्तावित कानून के आलोक में जो खर्चे बढ़ेंगे, उसका जिम्मा केंद्र सरकार खुद उठा, उन्हें राज्यों के ऊपर न डाले. गैर-सरकारी संगठनों की मुख्य आलोचना यह थी कि बिल में मौजूदा बाल-कुपोषण से निपटने के प्रावधानों को विधिक अधिकार में बदला जा सकता था, इस कानून से यह सारी आशंकाएं दूर होंगी.
10. मार्च, 2013 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कुछ बदलावों के साथ विधेयक को मंजूरी दी थी. हंगामे के बीच लोकसभा में खाद्य सुरक्षा बिल 6 मई को पेश किया गया था, लेकिन सदन में भ्रष्टाचार के मुद्दों पर हंगामें के चलते बिल पारित नहीं हो सका था. जुलाई 2013 में सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर इसे कुछ राज्यों में शुरू भी करा दिया, फिर. संसद ने 2 सितंबर 2013 को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पारित कर दिया और राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर 10 सितंबर से यह "राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013" लागू हो गया है.
खाद्यान्न उत्पादन में वृध्दि और गरीबी
भारत में 1960 के दशक के मध्य से गरीबी के स्तर में एक औसत से कम और अनिश्चित गिरावट दर्ज की गई है. इसके बावजूद सरकार की नवीनतम घोषणा के मुताबिक देश की 26 फीसदी आबादी ही गरीबी की रेखा के नीचे हैं; हालांकि इस आंकड़े को कई स्तरों पर चुनौती दी गई. इससे यह स्पष्ट होता है कि देश में चार गुना उत्पादन बढ़ने के बाद भी लोगों की रोटी का सवाल ज्यों का त्यों बना हुआ है. हम अब भी लोगों की खाद्यान्न सम्बन्धी जरूरतों को पूरा कर पाने की स्थिति में नहीं हैं. स्वाभाविक रूप से देख का अनुभव यह सिध्द करता है कि खाद्य उत्पादन की वृध्दि का सीधा सम्बन्ध समाज की खाद्य सुरक्षा की स्थिति से नहीं है और यह स्वीकार करना पड़ेगा कि देश के उत्पादन में जो वृध्दि हुई है, उसमें गैर- खाद्यान्न पदार्थों का हिस्सा बहुत ही तेज गति से बढ़ा है. जैसे- तेल, शक्कर, दूध, मांस, अण्डे, सब्जियां और फल. ये पदार्थ अब लोगों के कुल उपभोग का 60 फीसदी हिस्सा अपने कब्जे में रखते हैं. ऐसी स्थिति में यदि हम चाहते हैं कि लोगों तक खाद्य पदार्थों की सहज पहुंच हो तो इन गैर-खाद्यान्न पदार्थों के बाजार को नियंत्रित करना होगा. यह महत्वपूर्ण है कि 1951 से 2001 के बीच में देश में खाद्यान्न उत्पादन में चार गुना बढ़ोत्तरी हुई है, पर गरीब की खाद्य सुरक्षा अभी सुनिश्चित नहीं हो पाई थी.
खाद्य सुरक्षा का उद्देश्य
खाद्य सुरक्षा की अवधारणा व्यक्ति के मूलभूत अधिकार को परिभाषित करती है. अपने जीवन के लिए हर किसी को निर्धारित पोषक तत्वों से परिपूर्ण भोजन की जरूरत होती है. महत्वपूर्ण यह भी है कि भोजन की जरूरत नियत समय पर पूरी हो. इसका एक पक्ष यह भी है कि आने वाले समय की अनिश्चितता को देखते हुए हमारे भण्डारों में पर्याप्त मात्रा में अनाज सुरक्षित हों, जिसे जरूरत पड़ने पर तत्काल जरूरतमंद लोगों तक सुव्यवस्थित तरीके से पहुंचाया जाए.
इस परिप्रेक्ष्य में सरकार का दायित्व है कि बेहतर उत्पादन का वातावरण बनाए और खाद्यान्न के बाजार मूल्यों को समुदाय के हितों के अनुरूप बनाए रखे. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 इसी दिशा में सरकार ने बहुत बड़ा कदम उठाया है.

-कल्याण कुमार सिन्हा
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