4 फरवरी
2014 को
सम्मानित होंगे मास्टर
-ब्लास्टर
सलाम 'भारत रत्न' सचिन तेंदुलकर
-कल्याण
कुमार सिन्हा
देश
के उन सभी क्रिकेट प्रेमियों
का सपना अब पूरा हो जाएगा,
जो
मास्टर-ब्लास्टर
सचिन तेंदु
लकर को 'भारत
रत्न'
के
सम्मान से विभूषित देखना चाहते
हैं.
भारत
में सचिन के अलावा शायद ही कोई
शख्सियत ऐसी रही है,
जिसे
'भारत-
रत्न'
बनते
देखने के लिए लोगों में इतनी
उत्सुकता,
इतनी
उतावली है.
भारतीय
क्रिकेट के इस चमकते सितारे
को आगामी 4
फरवरी
को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
नई दिल्ली में देश का सर्वोच्च
नागरिक सम्मान देंगे.
सचिन
के साथ वैज्ञानिक सीएनआर राव
को भी यह सम्मान दिया जाएगा.
यह
सर्वोच्च सम्मान पाने वाले
सचिन पहले खिलाड़ी होंगे.
लगभग
चौथाई सदी की बेदाग बादशाहत,
क्रिकेट
की दुनिया में हर किसी को नसीब
नहीं होती.
40 वर्षीय
सचिन
तेंदुलकर
ने पिछले साल 16
नवंबर
2013
को
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से
मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम
में अपना 200वां
टेस्ट खेलकर संन्यास ले लिया
था.
इसके
कुछ घंटे बाद ही राष्ट्रपति
भवन की ओर से सचिन को भारत रत्न
देने की
घोषणा
कर दी गई
थी.
भारतीय
डाक विभाग ने भी
सचिन
तेंदुलकर
के 200वें
टेस्ट मैच को
एक और गौरव
प्रदान कर
दो डाक
टिकट जारी कर
दिए.
विदाई
के दो दिन पहले बीसीसीआई ने
भी उनका एक पो़ट्रेट उन्हें
भेंट किया था.
यह
पोट्रेट वड़ोदरा के सुप्रसिद्ध
पेंटर मूसा कच्ची से बनवाया
गया था.
मूसा
कच्ची सचिन की शख्सियत के बारे
मे कुछ यूं बयान करते हैं-
वे
बताते हैं-
"बीसीसीआई
ने सिर्फ छह दिन का समय दिया
था.
यह
आसान नहीं था.
सचिन
का चेहरा बेहद प्रभावी है.
उनकी
आंखे शेर जैसी हैं.
ऐसे
में मेरे लिए काफ़ी मुशिकल
हो रहा था.
मेरे
लिए मुश्किल यहीं समाप्त नहीं
हो रही थी,
क्योंकि
मेरे पास सचिन की जो भी तस्वीरें
थीं,
उनमें
वे काफ़ी गंभीर दिख रहे थे,
जो
भाव पोट्रेट के लिए मुझे मुनासिब
नहीं लगा.
मैंने
कई पोट्रेट बनाए हैं.
अपने
अनुभवों को याद करके मैंने
मोनालिसा की मुस्कान याद की.
मैंने
सचिन के लिए सही रंगों का चुनाव
करने के बाद उनके चेहरे पर
'मोनालिसा
की मुस्कान '
लगा
दी.
उनके
घुंघराले बालों को बनाना और
उनकी टी शर्ट में फ़ोल्ड को
दिखाने के लिए भी मुझे कड़ी
मेहनत करनी पड़ी.''
हालांकि
सचिन को भारत रत्न का सम्मान
देने की मांग जैसे ही उठी,
उसी
के साथ विवाद भी शुरू हो गया
था.
राजनीति
और समाज के कई हिस्सों से 'हाकी
के जादूगर'
स्वर्गीय
मेजर ध्यानचंद को पहले भारत
रत्न देने की मांग की जाने
लगी.
मेजर
ध्यानचंद ने अपनी प्रतिभा के
बल पर देश को तब हाकी के क्षेत्र
में तब दुनिया का सिरमौर बनाया
था,
जब
देश अंग्रेजों की गुलामी के
जंजीरों में जकड़ा हुआ था.
इस
महान खिलाड़ी का योगदान भी
विश्व में देश की प्रतिष्ठा
बढ़ाने में कम नहीं था.
सचिन
पिछले साल ही खिलाड़ी रहते
हुए राज्यसभा सांसद बने थे.
सरकार
के इस फैसले पर भी विवाद खड़ा
हो गया था.
विपक्ष
इस बात से भयभीत था कि सचिन की
शोहरत का लाभ कहीं सत्तारूढ़
कांग्रेस तो नहीं उठा ले जाना
चाहती.
अब,
जब
सचिन को भारत रत्न देने की
घोषणा की गई तो आर्श्च्यजनक
ढंग से न तो कहीं कोई विवाद है
और न कहीं कोई विरोध.
बल्कि
सभी ने सचिन को बधाई दी और खुशी
ही जाहिर की.
तुझ
में रब दिखता है...
आम
जन से महात्मा की उपाधि से
अलंकृत महात्मा गांधी की तरह
सचिन को भी भारत के क्रिकेट
प्रेमियों ने बहुत पहले ही
'भगवान'
की
उपाधि से विभूषित कर दिया है-
'क्रिकेट
का भगवान'.
मन
में यह सवाल उठना लाजिमी है
कि आखिर क्यों पूरी दुनिया
इस एक क्रिकेटर की इस तरह मुरीद
है.
आखिर
क्यों भारत की सवा अरब आबादी
इस एक नाम की पूजा करती है.
वह
भी दो दशक से लगातार.
क्रिकेट
तो सर डॉन ब्रैडमैन से लेकर
ब्रायन लारा तक,
अनेक
क्रिकेटरों ने खेला है,
लेकिन
आखिर क्यों मास्टर-ब्लास्टर
को ही 'द
गॉड ऑफ क्रिकेट'
कहा
गया.
इतने
लंबे करियर में उनका एक वाक्य
ऐसा नहीं है,
जिसने
उनके व्यक्तित्व को धूमिल
किया हो.
समरसता
और संयम के इस संगम ने उन्हें
दिन-प्रतिदिन
निखारा और इस मुकाम तक पहुंचाया.
तेंदुलकर
ने जो हासिल किया है,
वह
सिर्फ क्रिकेट के बूते पर ही
हासिल नहीं हो सकता.
वह
केवल बेजोड़ रिकार्ड से भी
हासिल नहीं हो सकता.
बला
की विनम्रता.
खेलों
की दुनिया में जब लोग धन और
प्रसिद्धि पाकर उसे पचाने
में असमर्थ पाए जाते हैं,
तब
वह अपवाद स्वरूप दिखाई पड़ते
हैं.
उनके
लंबे करियर के दौरान क्रिकेटरों
पर कैसे-कैसे
आरोप लगे?
सेक्स,
मैच
फिक्सिंग,
तरह-तरह
से पैसे कमाने की पिपासा,
पारिवारिक
बिखराव और स्कैंडल,
पर
तेंदुलकर बेदाग रहे.
अगर
कभी किसी ने उल्टा-सीधा
कहा या लिखा,
तब
भी चुप रहे.
शर्मीलेपन
की हद तक अपने चेहरे पर संकोच
चस्पां रखने वाला यह शख्स
मैदान में बड़े-बड़े
सूरमाओं के छक्के छुड़ाता
रहा.
लेकिन
फिर भी बला की विनम्रता.
देश-विदेश
से लगातार चोटी के सम्मान पाते
रहने के बावजूद चेहरे पर वही
मासूमियत.
विशिष्टता
अथवा दंभ के भाव का कहीं कोई
नामो निशान नहीं.
आलोचनाओं
और विवादों की लपट उनके दामन
तक भी पहुंची,
पर
हर बार जवाब उनके बल्ले ने
दिया.
उन्होंने
खुद को क्रिकेट के कुतर्क
शास्त्रियों की जमात से दूर
रखा.
आसान
नहीं है सचिन तेंदुलकर होना.
ऐसी
छवि,
ऐसा
आत्मबोध बड़ी मुश्किल से बनता
है.
बन
भी जाए तो दो दशक तक लगातार
कायम नहीं रह पाता.
क्रिकेट
इतिहास के महानतम खिलाड़ी सर
डोनॉल्ड ब्रेडमैन ने तेंदुलकर
की यह कहते हुए प्रशंसा की थी
कि पिछले 50
वर्षों
में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट
खेलने वाले बेशुमार बल्लेबाज़ों
में सिर्फ़ तेंदुलकर उनकी
शैली के निकट पहुंच सके हैं.
समकालीन
क्रिकेट में इतनी ताकत और
इज्जत के साथ कोई और खिलाड़ी
इतने लंबे समय तक मैदान पर
नहीं टिका था.
पर
खेल और उम्र के बीच रिश्ता तो
है.
सचिन
ने वन-डे
क्रिकेट से संन्यास ले लिया
था.
कारण
स्पष्ट था.
उस
‘पेस’ को निभा पाना उनके लिए
मुश्किल पड़ रहा था और फिर
क्रिकेट से ही विदाई लेने का
फैसला 200वें
टेस्ट मैच के साथ जब सचिन ने
लिया,
वह
भी सामयिक था.
और
इसके साथ ही देश ने इसी क्षण
के लिए 'भारत
रत्न'
का
यह तोहफा भी तैयार रखा था.
कल
सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के
मैदान पर एक बल्लेबाज,
गेंदबाज
अथवा एक फिल्डर के रूप में
नहीं दिखेंगे.
लेकिन
जब कभी वे मैदान पर नजर आएंगे,
मैदान
को और दर्शकों को वैसी ही खुशी
देंगे,
जैसे
चौके और छक्के मार कर दिया
करते थे.
एक
सुनहरा अतीत पीछे छोड़ वह भी
भले तमाम बड़े नामों की तरह
पार्श्व में चले गए हों,
तब
भी नई पीढ़ी उन्हें उसी तरह
उन्हें याद करेगी,
जैसे
वर्तमान पीढ़ी अतीत के बड़े
नामों को याद करती है.
जैसे
स्वर्गीय मेजर ध्यानचंद.
ऐसी
शख्सियतें किसी उपाधि की
मोहताज नहीं होतीं.
और
महात्मा गांधी,
वे
तो आज भी लोगों के हृदय में
जीवित हैं.
कला
की दुनिया नें क्या लता मंगेशकर,
अमिताभ
बच्चन भी वैसी ही चमक नहीं
बिखेर रहे?
-कल्याण
कुमार सिन्हा
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मानेवाड़ा रोड
नागपुर-
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महाराष्ट्र
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