महाराष्ट्र
:
मोदी
लहर ने विदर्भ में भी बदल दिए
सारे समीकरण
सभी
दस सीटों पर फहराया भगवा
परचम
जातिगत
भावनाओं और सभी तरह
के क्षेत्रीय समीकरणों को
नकाराते हुए भाजपा
के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी
नरेंद्र मोदी
की
लहर
पर सवार विदर्भ के मतदाताओं
ने भी लोकसभा चुनाव-
2014 के
परिणामों को राष्ट्रीय
जनतांत्रिक गठबंधन (राजग)
के
भाजपा एवं शिवसेना के प्रत्याशियों
के प्रति अपना प्रबल समर्थन
व्यक्त कर दिया है.
विदर्भ
की दस में से दस,
अर्थात
शत-प्रतिशत
जनादेश राजग के पक्ष में
गया.
आठ
चरणों में देश भर सम्पन्न हुए
इन चुनावों में विदर्भ की सभी
दस सीटों पर तीसरे चरण में
पिछले माह 10
अप्रैल
को मतदान हुआ था.
मतदान
के कुछ ही दिनों बाद संभावित
परिणामों के सन्दर्भ में
परम्परागत अनुमान यही थे कि
इस बार विदर्भ की कम
से कम सात सीटें राजग के खाते
में जुड़ जाएंगी.
भंडारा-गोंदिया
और वर्धा के संसदीय क्षेत्र
को लेकर कयास लगाए जा रहे थे
कि इन दो सीटों पर राकांपा
प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री
प्रफुल पटेल एवं पूर्व सांसद
दत्ता मेघे के पुत्र कांग्रेस
प्रत्याशी सागर मेघे जीत
जाएंगे.
इसी
प्रकार यह आशंका भी व्यक्त
की जा रही थी कि अमरावती
क्षेत्र से इस बार शिवसेना
प्रत्याशी आनंदराव अडसूल
संभवतः अपनी सीट खो बैठेंगे.
लेकिन
मोदी लहर का जलवा कुछ ऐसा रहा
कि सभी दस की दस सीटों में छह
भाजपा की और चार शिवसेना की
झोली में जा समाई.
यह
एक 'अंडर
करेंट'
ही
था.
जीत
जाने की खुशफहमी में जी रहे
अनेक कांग्रेस और राकांपा के
नेताओं के लिए यह परिणाम
अप्रत्याशित और एक धक्कादायक
रहा.
मोदी
लहर के चलते विदर्भ में जातिगत
समीकरण ध्वस्त हो गए.
धार्मिक
आधार पर मतों का ध्रुवीकरण
जरूर हुआ,
लेकिन
उसका फायदा भगवा गठबंधन को
हुआ.
युवा
मतदाताओं और रसोई गैस की राशनिंग
व महंगाई से त्रस्त महिलाओं
ने जाति के आधार पर चली आ रही
दलगत निष्ठा की तमाम धारणाओं
को विदर्भ में ध्वस्त कर दिया.
मतदाताओं
के ये दो सबसे बड़े वर्ग मोदी
लहर के चलते भगवा गठबंधन की
ओर झुके तथा कांग्रेस-राकांपा
की सारी उम्मीदों को तहस-नहस
कर दिया.
पूर्वी
विदर्भ की 5
सीटों
में से 4
भाजपा
को और 1
शिवसेना
को मिलीं.
नागपुर
संसदीय क्षेत्र भाजपा के लिए
प्रतिष्ठा की सीट बन गई थी.
क्योंकि
पार्टी के पूर्व अध्यक्ष तथा
हाल के दिनों में केंद्र की
राजनीति में भाजपा में नरेंद्र
मोदी के बाद दूसरे सबसे प्रमुख
चेहरे के रूप में उभरे नितिन
गडकरी यहां से मैदान में थे.
उनका
मुकाबला सात बार लोकसभा चुनाव
जीत चुके वरिष्ठ कांग्रेसी
नेता एवं केंद्रीय मंत्री
विलास मुत्तेमवार से था.
आशंका
थी कि गडकरी के लिए कांग्रेस
को दलितों तथा मुसलमानों के
साथ-साथ
कुणबी वोट बैंक का सर्मथन कड़ी
चुनौती साबित होगा.
लेकिन
नतीजों से स्पष्ट है कि पूर्व
भाजपा अध्यक्ष ने सारे जातिगत
समीकरण ध्वस्त कर जीत हासिल
की.
वह
कांग्रेस के परंपरागत वोट
बैंक में भी सेंध लगाने में
सफल हो गए.
विलास
मुत्तेमवार ने लोकसभा चुनाव
में जनता के फैसले को कबूल
किया है.
उन्होंने
कहा कि लोगों का गुस्सा महंगाई
को लेकर फूटा है.
आम
जनता बढ़ती
महंगाई से त्रस्त थी.
जनता
की नाराजगी के इसी मुद्दे को
लेकर भाजपा ने लोगों के मन की
बात को छू लिया.
रामटेक
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के
मतदाताओं ने भी
शिवसेना
उम्मीदवार कृपाल तुमाने पर
भरोसा जताया.
उन्होंने
कांग्रेस के दिग्गज नेता व
पूर्व केंद्रीय मंत्री मुकुल
वासनिक को पराजित किया.
खासबात
यह रही कि तुमाने का धनुष-बाण
रामटेक संसदीय क्षेत्र के
सभी विधानसभा क्षेत्रों में
चला.
राकांपा
नेता व अन्न व नागरी आपूर्ति
मंत्री अनिल देशमुख के विधानसभा
निर्वाचन क्षेत्र काटोल,
कांग्रेस
विधायक सुनील केदार का
सावनेर क्षेत्र में और
वित्त
राज्य मंत्री राजेंद्र मुलक
का भी प्रभाव उमरेड
में वासनिक
के हक में काम नहीं कर सका.
देशमुख,
केदार,
मुलक
की तिकड़ी
ने वासनिक के सर्मथन में कई
सभाएं कीं,
रोड
शो किए.
फिर
भी उनके निर्वाचन क्षेत्रों
में कांग्रेस उम्मीदवार वासनिक
की
दाल नहीं गली.
रामटेक
शहर कांग्रेस का गढ़
माना
जाता है.
वहां
भी पंजे का अस्तित्व संकट में
नजर आया.
भंडारा
में राकांपा के दिग्गज नेता
प्रफुल्ल पटेल की ऐसी करारी
हार की उम्मीद किसी ने नहीं
की होगी.
राकांपा
को उम्मीद थी कि कुनबी वोट
बैंक अगर भाजपा के नाना पटोले
के साथ है तो दलित,
मुस्लिम
व पोवार वोट बैंक उन्हें सहारा
देगा.
भंडारा-गोंदिया
निर्वाचन क्षेत्र में कुणबी
और पोवार दोनों ने ही पटोले
का जबर्दस्त सर्मथन किया.
आदिवासी
भी भाजपा के पक्ष में रहे और
लोधी समाज ने भी प्रफुल्ल भाई
से मुंह मोड़ लिया.
चंद्रपुर
संसदीय क्षेत्र में भाजपा
प्रत्याशी हंसराज अहीर भी
मोदी लहर पर सवार होकर अपनी
नैया पार उतार ले जाने में सफल
रहे.
जुझारू
नेता की पहचान रखने वाले अहीर
के लिए दुबारा यह चुनाव जीत
पाना आसान नहीं था.
एक
ओर उनकी मेहनत और दूसरी ओर
भाजपा का्र्यकताओं की सक्रियता
के साथ-साथ
मोदी लहर काम कर गया.
इसके
अलावा,
उनके
प्रमुख प्रतिद्वंदी कांग्रेस
के संजय देवतले का उनकी अपनी
ही पार्टी के पुगलिया गुट का
विरोध भी उनकी जीत को एक बड़ी
चमक दे गया.
गढ़चिरोली-चिमूर
लोकसभा क्षेत्र आदिवासी बहुल,
पिछड़ा
और नक्सल प्रभावित क्षेत्र
है.
यहां
भी भाजपा की मोदी लहर ने भाजपा
प्रत्याशी युवा नेता अशोक
नेते के लिए जीत को आसान बनाने
में बहुत काम आया.
भाजपा
के विकास का प्रश्न क्षेत्र
के मतदाताओं के लिए अहम बन
गया.
क्षेत्र
के पिछड़ा होने का दंश झेल रहे
इस क्षेत्र के मतदाताओं को
नरेंद्र मोदी की बातें कुछ
अधिक ही अपील कर गईं.
कांग्रेस
प्रत्याशी नामदेव उसेंडी के
लिए क्षेत्र का पिछड़ापन अधिक
ही भारी पड़ा.
पश्चिम
विदर्भ में भी यही हाल रहा.
इस
क्षेत्र की 3
सीटें
सेना की और 2
भाजपा
की झोली में गए.
लोकसभा
चुनावों के नतीजे यहां अमरावती
सीट पर एक ओर राकांपा प्रत्याशी
के लिए बेहद चौंकाने वाले
साबित हुए हैं,
दूसरी
ओर शिवसेना के विजयी प्रत्याशी
आनंदराव अडसूल के लिए भी अपना
यह गढ़ बचा लेना केवल मोदी लहर
के कारण ही संभव हो पाया.
इस
चुनाव में राकांपा को मिली
हार पूरी तरह आपसी विरोधों
का ही नतीजा साबित हुई है. ज्ञातव्य
है कि इस सीट से राकांपा द्वारा
नवनीत राणा को टिकट देते ही
राकांपा के भीतर ही विरोध के
सुर उठने लगे थे.
कल
तक राकांपा सुप्रीमो शरद पवार
के कट्टर सर्मथक कहलाने वाले
संजय और सुलभा खोड़के दंपति
ने बागी बन गए और सीधे बसपा
प्रत्याशी से हाथ मिला लिया.
कांग्रेस
नेताओं ने भी रवि राणा के साथ
अपने मनमुटाव के चलते खुलेआम
अपने ही गठबंधन के प्रत्याशी
के खिलाफ में काम किया.
इसी
कारण तिवसा विधानसभा क्षेत्र
में कांग्रेस विधायक होते
हुए भी शिवसेना की पहले राउंड
से शुरू हुई बढ़त जीत दर्ज करने
तक खत्म नहीं हुई. इसी
तरह विधायक रवि राणा को अपने
ही बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र
में मुंह की खानी पड़ी.
विधायक
पत्नी के ही राकांपा की उम्मीदवार
होने के कारण यहां पर विधायक
विरोधी लहर राकांपा प्रत्याशी
के लिए वोट काटने वाली साबित
हुई.
राकांपा
प्रत्याशी के लिए इस निर्वाचन
क्षेत्र में बसपा का हाथी भी
बेहद जानलेवा साबित हुआ.बसपा
के पारंपरिक वोटों के अलावा
खोड़के दंपति के सहयोग से मिले
अतिरिक्त वोट भी राकांपा के
लिए घातक साबित हुए.
इसी
तरह कल तक कांग्रेस गठबंधन
की टिकट पर लड़ने वाले रिपा
नेता राजेंद्र गवई की नाराजी
के बाद उनका चुनावी मैदान में
उतरना भी इस गठबंधन के वोटों
में बंटवारा करने वाला साबित
हुआ.
यदि
कांग्रेस विचारों के वोटों
में इस तरह बंटवारा नहीं हुआ
होता तो अमरावती में इस बार
शिवसेना का गढ़ ढहना लगभग तय
माना जा सकता था. सेना
प्रत्याशी अडसूल ने भी अपनी
हालत पतली देखते हुए नरेंद्र
मोदी के नाम पर ही वोट मांग-मांग
कर अपनी जीत सुनिश्चत कर ली.
वर्धा
में तगड़े कुणबी वोट बैंक के
बावजूद इस समाज के कद्दावर
नेता दत्ता मेघे अपने पुत्र
सागर मेघे को शर्मनाक हार से
बचा नहीं सके.
भाजपा
के रामदास तड़स तेली समाज के
हैं.
परिणामों
से जाहिर है कि मोदी लहर के
चलते उन्हें कुणबी ही नहीं
अन्य समुदायों के वोट भी मिले.
यवतमाल-वाशिम
क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी
और राज्य में मंत्री शिवाजी
राव मोघे ने सांसद के रूप में
हैट्रिक बना चुकी शिवसेना की
भावना गवली को कड़ी टक्कर देने
में सफल तो जरूर रहे,
लेकिन
अपनी जीत सुनिश्चत कर पाने
में विफल ही रहे.
मोघे
को अपनी ही पार्टी के लोगों
का उतना समर्थन नहीं मिल पाया,
जितना
अपेक्षित था.
प्रदेश
कांग्रेस अध्यक्ष माणिकराव
ठाकरे के समर्थक उनके पुत्र
राहुल ठाकरे को वहां से कांग्रेस
उम्मीदवार बनाना चाहते थे.
भावना
लेकिन अपनी व्यक्तिगत कर्मठता,
अच्छी
छवि और मोदी लहर के सहारे अपनी
चौथी जीत सुनिश्चत करने में
सफल हो गईं.
अकोला
में निष्क्रिय होने का ठप्पा
लगने के बावजूद भाजपा के संजय
धोत्रे ने तीसरी बार जीत हासिल
की.
यहां
दलित भारिपा-बहुजन
महासंघ के प्रकाश आंबेडकर
तथा मुस्लिम कांग्रेस के
हिदायत पटेल के पक्ष में खड़े
दिखे.
लेकिन
अन्य सभी वर्ग,
जिनमें
कांग्रेस सर्मथक भी हैं,
ने
एकमुश्त धोत्रे के पक्ष में
मतदान किया.
इस
चुनाव में 2
लाख
3
हजार
मतों के
अंतर से
संजय धोत्रे ने जीत दर्ज करते
हुए हैट्रिक की है.
यहां
कांग्रेस
के हिदायत पटेल को करारी शिकस्त
मिली है.
बुलढाणा
संसदीय क्षेत्र के राकांपा
उम्मीदवार कृष्णराव इंगले
चुनाव हार गए.
शिवसेना
के प्रताप जाधव को
भी यहां भाजपा के मोदी लहर का
बड़ा सहारा मिला.
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