Saturday 8 December 2012

आस्था का पर्व कुम्भ


अखाड़ों के जुलूस होते हैं श्रद्धा का केंद्र
आस्था के पर्व कुम्भ या महाकुम्भ पर विभिन्न साधु-सन्तों के अखाड़ों के भव्य जुलूस लोगों की श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र होते हैं.
अखाड़ों का पेशवाई (मेला क्षेत्र में प्रवेश) का जुलूस हो या फिर स्नान पर्वो के जुलूस, इन्हें देखकर श्रद्धालुओं में आस्था का सैलाब उमड़ता है. कुम्भ पर अखाड़ों की शोभायात्र, पताकाओं और अपने प्रतीकों से युक्त अनुशासित होकर बैण्ड बाजों की धुन पर रंगबिरंगी छटा बिखेरती कुछ ऐसे निकलती है कि लोग उनके दर्शन कर धन्य हो जाते हैं.
सभी मठों और मतों के सन्यासी अन्य दिनों चाहे जहां रमते रहे हों, लेकिन कुम्भ. अर्धकुम्भ और महाकुम्भ पर्व पर तीर्थराज प्रयाग में त्रिवेणी तट पर उनके दर्शन अवश्य होते हैं. गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन तट पर अगले माह शुरू होने जा रहे महाकुम्भ के लिए अखाड़ों का आना शुरू हो गया है.
पंचदशनाम, जूना, आवाहन और पंचअग्नि अखाड़ों ने गुरुवार को कुम्भ मेला क्षेत्र में संगम की रेती पर धर्मध्वजा फहराकर अपनी छावनी का निर्माण शुरू कर दिया है. संगम तट पर कुम्भ मेला क्षेत्र के सेक्टर-4 में आवंटित भूमि पर अगहन कृष्णपक्ष भैरव अष्टमी गुरुवार को वैदिक मंत्रोच्चार के बीच इन अखाड़ों ने कलश स्थापना कर महाकुम्भ 2013 में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है.
महानिर्वाणी और निरंजनी अखाड़ों ने भी मेला क्षेत्र में भूमि पूजन कर दिया है तथा भव्य तैयारी शुरू हो गई है. अन्य अखाड़े भी शीघ्र ही मेला क्षेत्र में भूमि पूजन तथा धर्मध्वजा फहराने की तैयारी कर रहे हैं.
महाकुम्भ मेला मकर संक्रान्ति के स्नान पर्व 14 जनवरी से शुरू हो रहा है और उस दिन अखाड़ों का पहला शाही स्नान होगा.
श्री पंचायती महानिर्वाणी और श्री पंचअटल अखाड़ा 31 दिसंबर को अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगा. दरअसल मठ और अखाड़ों का एक अलग इतिहास है. शुरू से ही ये सांस्कृतिक और धार्मिक व्यवस्था को सुचारू रुप से संचालित और व्यवस्थित करते हुए समाज को दिशानिर्देश देते रहे हैं.
मठ एक सामाजिक व्यवस्था है और आदि शंकराचार्य ने मठीय व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए देश की चारों दिशाओं में प्रमुख तीर्थ स्थानों चार मठों पूर्व में पुरी गोवर्धन पीठ, पश्चिम में द्वारिका, दक्षिण में श्रंगेरी और उत्तर में ज्योतिष पीठ की स्थापना की थी.
अखाड़े मठों के ही एक विशिष्ट अंग हैं. अखाड़ों के संन्यासी एक ओर जहां शास्त्रों में पारंगत होते थे, वहीं वह शस्त्र चलाने में भी निपुण थे.
कुम्भ मेला के संदर्भ में अखाड़ों का तात्पर्य साधुओं के संगठित समुदाय से है, जिनकी अपनी विशिष्ट परम्पराएं तथा रीतिरिवाज होते हैं.
साधुओं के तीन प्रमुख सम्प्रदाय दसनामी संन्यासी अथवा नागा संन्यासी, दूसरा वैरागी तथा तीसरा उदासीन है. दसनामी संन्यासियों के विभिन्न मठों के आधार पर दस नामकरण गिरि, पुरी, भारतीय, वन, अरण्य, पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम एवं सरस्वती बताए गए हैं. इसी कारण इन्हें दसनामी साधु भी कहा जाता है.
दसनामी संन्यासी शिव के उपासक होते हैं और ये मुख्यत: माला धारण करते हैं. स्नान के पूर्व ये संन्यासी अपनी शस्त्र यात्र को स्नान कराते हैं. इसके बाद इनके प्रमुख मण्डलेश्वर आदि स्नान करते हैं. नागा संन्यासियों के सात अखाड़े महानिर्वाणी, अटल, निरंजनी, आनन्द, जूना, आवाहन तथा पंचअग्नि हैं.
वैरागी अखाड़े श्री विष्णु के उपासक होते हैं और ये मुख्यत: पांच सम्प्रदायों माधव, विष्णुस्वामी अथवा पुपिटमार्ग, वल्लभाचार्य, निम्बार्क तथा रामानुज में विभाजित हैं. इनमें भी रामानुज के सात अखाड़े निर्वाणी, दिगम्बरी, निर्मोही, खाकी, निरावम्बी, संतोषी और निर्वाण अखाड़े हैं.
उदासीन अखाड़े के मत के साधु खुद को उदासी कहते हैं. इनके तीन अखाड़े बड़ा पंचायती उदासीन अखाड़ा, नया पंचायती उदासीन अखाड़ा तथा निर्वाणी अखाड़ा हैं.
हर कुम्भ, अर्धकुम्भ एवं महाकुम्भ पर अखाड़ों का दर्शनीय रूप दिखाई पड़ता है. इस महाकुम्भ में भी विभिन्न ध्वजा, पताकाओं के साथ शिविरों में धूनी रमाए अग्नि के सामने भजन कीर्तन में लीन साधु-सन्तों के दर्शन होंगे. इनके द्वारा विभिन्न प्रकार के यज्ञों और भण्डारों का आयोजन किया जाता है. इसे देखकर लगता है कि संन्यासियों और महात्माओं का संसार कुछ अलग ही है.

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