Wednesday 25 July 2012

कूद पड़ं मैं भी संसद में बम लेकर

कवि दयाशंकर तिवारी मौनकी एक रचना
मौननागपुर.


कूद पड़ं मैं भी संसद में बम लेकर

बार बार मन में आता है एक निर्णय निर्मम लेकर
भगतसिंह सा कूद पड़ं मैं भी संसद में बम लेकर
जो रक्ताक्षर करते आए सत्ता की दीवारों पर
कब सत्ता की नजर पड़ी है उन बेबस लाचारों पर
राजमहल स्वारथ से आते झोपड़ियों के द्वारों पर
विजय चुनाव में रचते जाते दौलत के अंबारों पर
 
व्यक्तिवाद की तूती बोले अंकुश लगा विचारों पर
जनता के प्रतिनिधि नाच रहे हैं पद के घृणित इशारों पर
 
अब तक धोखा खाया है करके यकीन मुख्तारों पर
जनता तो है मोम की गुड़िया मचल रही अंगारों पर
 
चाटुकार बन गई कलम विश्वास न कर अखबारों पर
इन्होंने लिखना छोड़ दिया बेबस हालात के मारों पर
कब तक जनता धोखा खाए लोकतंत्र का भ्रम लेकर
भगतसिंह सा कूद पड़ं मैं भी संसद में बम लेकर
बार बार मन में आता है एक निर्णय निर्मम लेकर
भगतसिंह सा कूद पड़ं मैं भी संसद में बम लेकर
सत्ता बहुमत के मसनद बैठी झूम रही बेख्याली में
सुविधा की मदिरा बंटती है मदहोशों की प्याली में
हमने अंधों को खड़ा कर दिया बगिया की रखवाली में
चोरों के हाथ की छाप पड़ी है चमन की डाली डाली में
भारत था सोने का पंछी अब बदल गया कंगाली में
सुख से जीने वालों का जीवन बदला बदहाली में
छप्पन भोग सजे नेता- खाते चांदी की थाली में
भूखा बचपन जूठन ढूंढे कचराघर में नाली में
जनता का हक निगल के नेता अब मशगूल जुगाली में
देश गरीबी के दलदल में सत्ता लिप्त दलाली में
 
दोराहे पर खड़ी है जनता अपनी आंखें नम लेकर
भगतसिंह सा कूद पड़ं मैं भी संसद में बम लेकर
बार बार मन में आता है एक निर्णय निर्मम लेकर
भगतसिंह सा कूद पड़ं मैं भी संसद में बम लेकर

-दयाशंकर तिवारी

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