Thursday 27 February 2014

भारत में भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार : अमेरिकी रिपोर्ट

भारत में भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार : अमेरिकी रिपोर्ट



हम भारत के चमकने की बात करें, भारत के निर्माण या नव निर्माण का चाहे जितना प्रचार करें, जितनी बातें करें और अपनी पीठ खुद ठोकते फिरें, लेकिन हम क्या हैं और कहां हैं, आज हमारी असलियत हमसे बेहतर दुनिया के दूसरे लोग जानते हैं. हमारे राजनेताओं ने हमारा और हमारे देश के चरित्र को दुनिया में किस हद तक दागदार बना दिया है, कितना गिरा दिया है, इसका अंदाजा हमें दूसरों से ही मिल पाता है. पढ़िए अमेरिकी विदेश विभाग की दुनिया के देशों में मानवाधिकार पर रिपोर्ट : Corruption everywhere in INDIA (भारत में चारों ओर भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार).....


वाशिंगटन : मेरिकी कांग्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में न्यायपालिका समेत सरकार के हर स्तर पर व्यापक भ्रष्टाचार है.
अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी द्वारा कल जारी इस वार्षिक रिपोर्ट "कंट्री रिपोर्ट्स ऑन ह्यूमन राइट्स प्रेक्टिसेज" में कहा गया, ‘‘भ्रष्टाचार व्यापक स्तर पर है.’’
इस रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि आधिकारिक स्तर पर भ्रष्टाचार होने पर कानून आपराधिक दंड देता है, लेकिन भारत सरकार ने कानून को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया और अधिकारी छूट का फायदा उठा कर भ्रष्ट कामों में लिप्त हो जाते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘सरकार के हर स्तर पर भ्रष्टाचार मौजूद है. सीबीआई ने जनवरी से नवंबर माह के बीच में भ्रष्टाचार के 583 मामले दर्ज किए हैं.’’
इसमें कहा गया है ‘‘केंद्रीय सतर्कता आयोग को वर्ष 2012 में 7,224 मामले मिले. 5,528 मामले वर्ष 2012 के थे और बाकी 696 मामले 2011 से बचे थे. आयोग ने 5,720 मामलों पर कार्रवाई की सिफारिश की थी.’’
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘सीवीसी ने शिकायतें दर्ज कराने के लिए टोल फ्री हॉटलाइन और सूचनाएं साझा करने के लिए एक वेब पोर्टल शुरू किया. गैर सरकारी संगठनों ने पाया कि घूस आम तौर पर जल्दी काम करवाने के लिए दी गई। इनमें पुलिस सुरक्षा, स्कूल में दाखिला, पानी की आपूर्ति या सरकारी मदद जैसे काम प्रमुख थे.’’
इसमें कहा गया कि समाज के संगठनों ने पूरे साल सार्वजनिक प्रदर्शनों और भ्रष्टाचार के व्यक्तिपरक खुलासे करने वाली वेबसाइटों के जरिए जनता का ध्यान भ्रष्टाचार की ओर खींचा.
रिपोर्ट के अनुसार, संसद ने दिसंबर में एक विधेयक पारित करके लोकपाल नामक एक निगरानी संगठन की स्थापना की, जो कि सरकार में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करेगा.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि गरीबी हटाने और रोजगार दिलाने के कई सरकारी कार्यक्रम खराब क्रियान्वयन और भ्रष्टाचार के कारण प्रभावित हुए.
उदारहरण के लिए आरटीआई कानून के तहत सरकारी दस्तावेज हासिल करने के बाद एक याचिकाकर्ता ने महाराष्ट्र आदिवासी विकास विभाग के फंड में अनियमितता के आरोप लगाए.
13 जून को बम्बई उच्च न्यायालय ने इसकी जांच के लिए एक विशेष दल के गठन के आदेश जारी किए. इस मामले में आदिवासियों के कल्याण की राशि अन्य कामों में खर्च किए जाने का आरोप था.
तिरूवन्नामलाई के नगर पार्षद के.वी.एन. वेंकटेश समेत कई संदिग्धों के खिलाफ मामले की सुनवाई का इंतजार साल के अंत तक खत्म नहीं हुआ. जुलाई 2012 में सामाजिक कार्यकर्ता राजमोहन चंद्रा की हत्या इसी मामले से जुड़ी है. राजमोहन ने भ्रष्टाचार करने और जमीन हड़पने के संदिग्ध सरकारी अधिकारियों, नेताओं और रीयल एस्टेट एजेंटों के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी.
बीते दिसंबर में वर्ष 2012 के आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाले में राज्य मुख्यमंत्रियों और अन्य अधिकारियों की कथित भूमिका की जांच करने वाले आयोग ने अपनी रिपोर्ट महाराष्ट्र विधानसभा को सौंपी थी, लेकिन महाराष्ट्र राज्य सरकार ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया. इस घोटाले में सैनिकों व उनकी विधवाओं के लिए आरक्षित अपार्टमेंट गलत तरीके से दूसरों को आवंटित कर दिए गए थे.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि वर्ष 2008 में 2जी मोबाइल टेलीफोन स्पेक्ट्रम की बिक्री में धांधली के लिए रिश्वत लेने के आरोपी पूर्व दूरसंचार मंत्री ए.राजा और राज्यसभा सदस्य एम.के. कनिमोई के खिलाफ सुनवाई साल के अंत तक नहीं पूरी हो पाई.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 7 अगस्त को न्यायमूर्ति आर..मेहता ने उच्चतम न्यायालय द्वारा उनकी नियुक्ति बरकरार रखने के बावजूद गुजरात का लोकायुक्त बनने से इंकार कर दिया. उन्होंने यह टिप्पणी भी की थी कि राज्य सरकार उनकी जांचों में मदद नहीं करेगी.
गुजरात सरकार ने लोकायुक्त की नियुक्ति में राज्यपाल और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की प्रमुखता को कम करने के लिए अप्रैल में गुजरात लोकायुक्त कानून में संशोधन की मांग की थी. इसमें उसने मांग की थी कि नियुक्ति की शक्तियां सिर्फ मुख्यमंत्री के फैसले में निहित हों.
राज्यपाल ने इस विधेयक पर हस्ताक्षर से इंकार कर दिया था.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह कानून एक स्वतंत्र न्यायपालिका की बात करता है और सरकार सामान्यत: न्यायिक स्वतंत्रता का सम्मान करती है। हालांकि ‘न्यायिक भ्रष्टाचार’ व्यापक स्तर पर मौजूद है.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘न्यायिक व्यवस्था पर काम का बहुत गंभीर बोझ है और इसमें मामले निपटाने की आधुनिक व्यवस्था का अभाव है. इस वजह से न्याय मिलने में या तो देरी होती है या फिर न्याय मिल ही नहीं पाता. अगस्त में कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि उच्चतम न्यायालय में तीन और उच्च न्यायालयों में 275 रिक्तियां हैं.’’
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘अधीनस्थ न्यायपालिकाओं में भी रिक्तियों की संख्या बहुत ज्यादा है. राज्यों में 3700 से ज्यादा पद भरे जाने हैं. कानून मंत्री ने मामलों के निपटारे में हो रहे विलंब का कारण अदालतों में खाली पदों को बताया है.’’



Friday 7 February 2014

समाचार-पत्र प्रबंधकों की याचिकाएं खारिज

पत्रकारों की जीत, मजीठिया बोर्ड की सिफारिशें बरकरार
नई दिल्लीशुक्रवार, 7 फरवरी 2014

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पत्रकारों और गैर-पत्रकारों के वेतन पुनर्निर्धारण के लिए गठित मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को शुक्रवार को बरकरार रखते हुए कर्मचारियों को परिवर्तित वेतन देने का निर्देश दिया.

प्रधान न्यायाधीश पी. सदाशिवम की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि कर्मचारियों को परिवर्तित वेतन 11 नवंबर
, 2001 से मिलना चाहिए. सरकार ने इसी तारीख को बोर्ड की सिफारिशें अधिसूचित की थीं.
न्यायालय ने कहा कि कर्मचारियों को नया वेतन अप्रैल
, 2014 से मिलेगा और नियोक्ता को 1 साल के भीतर 4 किस्तों में बकाया राशि का भुगतान करना होगा.
न्यायाधीशों ने कहा कि हम सिफारिशों को वैध ठहराते हैं
. न्यायाधीशों ने कहा कि बोर्ड ने अपनी सिफारिशें देने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन किया था और उसके तथा उसके गठन के बारे में लगाए गए आरोप सही नहीं हैं.
न्यायालय ने बोर्ड के गठन की वैधानिकता और इसकी सिफारिशों को चुनौती देने वाली विभिन्न समाचार-पत्रों के प्रबंधकों की याचिकाएं खारिज कर दीं
.
न्यायाधीशों ने कहा कि हम पूरी तरह संतुष्ट हैं कि बोर्ड द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया वैध है और उसने एकतरफा और मनमाने तरीके से कोई निर्णय नहीं किया और प्रक्रिया में कोई अनियमितता नहीं है
.
न्यायालय ने कहा कि अतिरिक्त वेतन (वेरिएबल पे) के बारे में बोर्ड की सिफारिशें भी उसके अधिकार क्षेत्र में थीं
. न्यायालय ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि वेतन संरचना अनुचित है. न्यायालय ने इस साल जनवरी में समाचार-पत्रों की याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के बाद कहा था कि निर्णय बाद में सुनाया जाएगा.
श्रम मंत्रालय ने समाचार पत्र उद्योग की आपत्तियों के बावजूद 2007 में मजीठिया वेतन बोर्ड का गठन किया था और इसके बाद जनवरी
, 2008 से कर्मचारियों को मूल वेतन का 30 फीसदी तदर्थता के आधार पर अंतरिम राहत देने की घोषणा की गई थी. समाचार-पत्र उद्योग ने इसे लागू किया था.
वेतन बोर्ड ने 31 दिसंबर
, 2010 को अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपी थीं, जिन्हें केंद्र ने कुछ संशोधनों के साथ 11 नवंबर, 2011 को अधिसूचित किया था. (भाषा)


Monday 3 February 2014

'भारत रत्‍न' बने सचिन तेंडुलकर और प्रो. राव
नई दिल्‍ली. क्रिकेट के भगवान सचिन तेंडुलकर और वैज्ञानिक प्रो. सीएनआर राव को आज राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भारत रत्‍न से सम्‍मानित किया। यहां राष्‍ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में दोनों को सम्‍मानित किया गया। इस मौके पर सचिन अपने परिवार के साथ मौजूद थे। 

14 साल पहले बना था सचिन को दिए जाने वाला मेडल 

भारत रत्‍न का जो मेडल सचिन को दिया गया है, उसे 2000 में बनाया गया था। सचिन को दिया जाने वाला ये पदक कोलकाता की अलीपुर टकसाल में रखा था, जहां से इसे पॉलिश कराने और साफ-सफाई करने के बाद पिछले हफ्ते ही गृहमंत्रालय को भेजा गया है। हालांकि, मंत्रालय ने यह साफ नहीं किया था कि 14 साल पहले बने मेडल को साफ कराने का आदेश क्यों दिया था। सचिन को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान 16 नवंबर को किया गया था। 

कौन हैं प्रो राव

भारत रत्‍न से सम्‍मानित होने वाले प्रो राव चौथे वैज्ञानिक हैं। वैज्ञानिक संस्था JNCASR के मानद अध्यक्ष प्रो राव का जन्म 1935 में बेंगलुरु में हुआ था। राव ने 1954 में BHU से मास्टर डिग्री प्राप्त की। दुनियाभर में 90 से ज्यादा पुरस्कार-सम्मान प्राप्त कर चुके राव को मेटल ऑक्साइड के शोध ने मशहूर किया। राव ने 1500 शोधपत्र और 45 किताबें लिखी हैं। नैनो मटेरियल क्षेत्र में उनका अहम योगदान रहा है। 
 


4 फरवरी 2014 को सम्मानित होंगे मास्टर -ब्लास्टर

सलाम 'भारत रत्न' सचिन तेंदुलकर

-कल्याण कुमार सिन्हा
देश के उन सभी क्रिकेट प्रेमियों का सपना अब पूरा हो जाएगा, जो मास्टर-ब्लास्टर सचिन तेंदु
लकर को 'भारत रत्न' के सम्मान से विभूषित देखना चाहते हैं. भारत में सचिन के अलावा शायद ही कोई शख्सियत ऐसी रही है, जिसे 'भारत- रत्न' बनते देखने के लिए लोगों में इतनी उत्सुकता, इतनी उतावली है. भारतीय क्रिकेट के इस चमकते सितारे को आगामी 4 फरवरी को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नई दिल्ली में देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देंगे. सचिन के साथ वैज्ञानिक सीएनआर राव को भी यह सम्मान दिया जाएगा. यह सर्वोच्च सम्मान पाने वाले सचिन पहले खिलाड़ी होंगे.
लगभग चौथाई सदी की बेदाग बादशाहत, क्रिकेट की दुनिया में हर किसी को नसीब नहीं होती. 40 वर्षीय सचिन तेंदुलकर ने पिछले साल 16 नवंबर 2013 को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में अपना 200वां टेस्ट खेलकर संन्यास ले लिया था. इसके कुछ घंटे बाद ही राष्ट्रपति भवन की ओर से सचिन को भारत रत्न देने की घोषणा कर दी गई थी. भारतीय डाक विभाग ने भी सचिन तेंदुलकर के 200वें टेस्ट मैच को एक और गौरव प्रदान क दो डाक टिकट जारी कर दि.
विदाई के दो दिन पहले बीसीसीआई ने भी उनका एक पो़ट्रेट उन्हें भेंट किया था. यह पोट्रेट वड़ोदरा के सुप्रसिद्ध पेंटर मूसा कच्ची से बनवाया गया था. मूसा कच्ची सचिन की शख्सियत के बारे मे कुछ यूं बयान करते हैं- वे बताते हैं- "बीसीसीआई ने सिर्फ छह दिन का समय दिया था. यह आसान नहीं था. सचिन का चेहरा बेहद प्रभावी है. उनकी आंखे शेर जैसी हैं. ऐसे में मेरे लिए काफ़ी मुशिकल हो रहा था. मेरे लिए मुश्किल यहीं समाप्त नहीं हो रही थी, क्योंकि मेरे पास सचिन की जो भी तस्वीरें थीं, उनमें वे काफ़ी गंभीर दिख रहे थे, जो भाव पोट्रेट के लिए मुझे मुनासिब नहीं लगा. मैंने कई पोट्रेट बनाए हैं. अपने अनुभवों को याद करके मैंने मोनालिसा की मुस्कान याद की. मैंने सचिन के लिए सही रंगों का चुनाव करने के बाद उनके चेहरे पर 'मोनालिसा की मुस्कान ' लगा दी. उनके घुंघराले बालों को बनाना और उनकी टी शर्ट में फ़ोल्ड को दिखाने के लिए भी मुझे कड़ी मेहनत करनी पड़ी.''
हालांकि सचिन को भारत रत्न का सम्मान देने की मांग जैसे ही उठी, उसी के साथ विवाद भी शुरू हो गया था. राजनीति और समाज के कई हिस्सों से 'हाकी के जादूगर' स्वर्गीय मेजर ध्यानचंद को पहले भारत रत्न देने की मांग की जाने लगी. मेजर ध्यानचंद ने अपनी प्रतिभा के बल पर देश को तब हाकी के क्षेत्र में तब दुनिया का सिरमौर बनाया था, जब देश अंग्रेजों की गुलामी के जंजीरों में जकड़ा हुआ था. इस महान खिलाड़ी का योगदान भी विश्व में देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने में कम नहीं था.
सचिन पिछले साल ही खिलाड़ी रहते हुए राज्यसभा सांसद बने थे. सरकार के इस फैसले पर भी विवाद खड़ा हो गया था. विपक्ष इस बात से भयभीत था कि सचिन की शोहरत का लाभ कहीं सत्तारूढ़ कांग्रेस तो नहीं उठा ले जाना चाहती. अब, जब सचिन को भारत रत्न देने की घोषणा की गई तो आर्श्च्यजनक ढंग से न तो कहीं कोई विवाद है और न कहीं कोई विरोध. बल्कि सभी ने सचिन को बधाई दी और खुशी ही जाहिर की.
तुझ में रब दिखता है...
आम जन से महात्मा की उपाधि से अलंकृत महात्मा गांधी की तरह सचिन को भी भारत के क्रिकेट प्रेमियों ने बहुत पहले ही 'भगवान' की उपाधि से विभूषित कर दिया है- 'क्रिकेट का भगवान'. मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर क्यों पूरी दुनिया इस एक क्रिकेटर की इस तरह मुरीद है. आखिर क्यों भारत की सवा अरब आबादी इस एक नाम की पूजा करती है. वह भी दो दशक से लगातार. क्रिकेट तो सर डॉन ब्रैडमैन से लेकर ब्रायन लारा तक, अनेक क्रिकेटरों ने खेला है, लेकिन आखिर क्यों मास्टर-ब्लास्टर को ही 'द गॉड ऑफ क्रिकेट' कहा गया.
इतने लंबे करियर में उनका एक वाक्य ऐसा नहीं है, जिसने उनके व्यक्तित्व को धूमिल किया हो. समरसता और संयम के इस संगम ने उन्हें दिन-प्रतिदिन निखारा और इस मुकाम तक पहुंचाया. तेंदुलकर ने जो हासिल किया है, वह सिर्फ क्रिकेट के बूते पर ही हासिल नहीं हो सकता. वह केवल बेजोड़ रिकार्ड से भी हासिल नहीं हो सकता.
बला की विनम्रता.
खेलों की दुनिया में जब लोग धन और प्रसिद्धि पाकर उसे पचाने में असमर्थ पाए जाते हैं, तब वह अपवाद स्वरूप दिखाई पड़ते हैं. उनके लंबे करियर के दौरान क्रिकेटरों पर कैसे-कैसे आरोप लगे? सेक्स, मैच फिक्सिंग, तरह-तरह से पैसे कमाने की पिपासा, पारिवारिक बिखराव और स्कैंडल, पर तेंदुलकर बेदाग रहे. अगर कभी किसी ने उल्टा-सीधा कहा या लिखा, तब भी चुप रहे. शर्मीलेपन की हद तक अपने चेहरे पर संकोच चस्पां रखने वाला यह शख्स मैदान में बड़े-बड़े सूरमाओं के छक्के छुड़ाता रहा. लेकिन फिर भी बला की विनम्रता. देश-विदेश से लगातार चोटी के सम्मान पाते रहने के बावजूद चेहरे पर वही मासूमियत. विशिष्टता अथवा दंभ के भाव का कहीं कोई नामो निशान नहीं.
आलोचनाओं और विवादों की लपट उनके दामन तक भी पहुंची, पर हर बार जवाब उनके बल्ले ने दिया. उन्होंने खुद को क्रिकेट के कुतर्क शास्त्रियों की जमात से दूर रखा. आसान नहीं है सचिन तेंदुलकर होना. ऐसी छवि, ऐसा आत्मबोध बड़ी मुश्किल से बनता है. बन भी जाए तो दो दशक तक लगातार कायम नहीं रह पाता.
क्रिकेट इतिहास के महानतम खिलाड़ी सर डोनॉल्ड ब्रेडमैन ने तेंदुलकर की यह कहते हुए प्रशंसा की थी कि पिछले 50 वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाले बेशुमार बल्लेबाज़ों में सिर्फ़ तेंदुलकर उनकी शैली के निकट पहुंच सके हैं. समकालीन क्रिकेट में इतनी ताकत और इज्जत के साथ कोई और खिलाड़ी इतने लंबे समय तक मैदान पर नहीं टिका था. पर खेल और उम्र के बीच रिश्ता तो है. सचिन ने वन-डे क्रिकेट से संन्यास ले लिया था. कारण स्पष्ट था. उस ‘पेस’ को निभा पाना उनके लिए मुश्किल पड़ रहा था और फिर क्रिकेट से ही विदाई लेने का फैसला 200वें टेस्ट मैच के साथ जब सचिन ने लिया, वह भी सामयिक था. और इसके साथ ही देश ने इसी क्षण के लिए 'भारत रत्न' का यह तोहफा भी तैयार रखा था.
कल सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के मैदान पर एक बल्लेबाज, गेंदबाज अथवा एक फिल्डर के रूप में नहीं दिखेंगे. लेकिन जब कभी वे मैदान पर नजर आएंगे, मैदान को और दर्शकों को वैसी ही खुशी देंगे, जैसे चौके और छक्के मार कर दिया करते थे. एक सुनहरा अतीत पीछे छोड़ वह भी भले तमाम बड़े नामों की तरह पा‌र्श्व में चले गए हों, तब भी नई पीढ़ी उन्हें उसी तरह उन्हें याद करेगी, जैसे वर्तमान पीढ़ी अतीत के बड़े नामों को याद करती है. जैसे स्वर्गीय मेजर ध्यानचंद. ऐसी शख्सियतें किसी उपाधि की मोहताज नहीं होतीं. और महात्मा गांधी, वे तो आज भी लोगों के हृदय में जीवित हैं. कला की दुनिया नें क्या लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन भी वैसी ही चमक नहीं बिखेर रहे?
-कल्याण कुमार सिन्हा
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महाराष्ट्र