Saturday 1 November 2014

नई दिशा में महाराष्ट्र

नई दिशा में महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में देवेंद्र फड़नवीस के नेतृत्व में पहली बार भाजपा की सरकार बनी है। यह चमत्कार ही है कि अल्पमत में होते हुए भी भाजपा की इस सरकार को दो-दो विरोधियों- उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की राकांपा से समर्थन मिल रहा है। वस्तुत: महाराष्ट्र का यह चुनाव कुछ प्रवृत्तियों का संकेतक है। एक, इस चुनाव ने भाजपा और शिवसेना के संबंधों को हमेशा के लिए पुनर्परिभाषित कर दिया है। दो, भाजपा को संपूर्ण महाराष्ट्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का मौका मिल गया। तीन, कांग्रेस और राकांपा के भ्रष्ट नेताओं के बुरे-दिन दूर नहीं और चौथा, मोदी-अमित शाह की टीम ने मुख्यमंत्री के चयन में किसी दबाव को तरजीह नहीं दी।
इन चुनावों में उद्धव ठाकरे ने अपने जीवन का सबसे गलत निर्णय लिया और अपनी हठधर्मिता के कारण भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया। भाजपा तो शुरू से इस गठबंधन में अपने को छोटा-पार्टनर मानकर केवल 130 सीटें मांग रही थी, जो कुल सीटों का 45 प्रतिशत थी, लेकिन सेना द्वारा 119 से ज्यादा सीटें न देने और मुख्यमंत्री पद लेने के अडि़यल रवैये से बात बिगड़ गई और 25 वर्ष पुराना गठबंधन टूट गया। इसका बहुत बड़ा नुकसान उन दोनों को होने से बच गया, क्योंकि महाराष्ट्र के सबसे बड़े खिलाड़ी शरद पवार को यह अहसास हो गया था कि सरकार भाजपा की बनने वाली है और उन्होंने अपनी चालें चल दीं।
पवार ने कई चालें चलीं। सबसे पहले भाजपा-सेना गठबंधन टूटते ही उन्होंने कांग्रेस से अपना गठबंधन तोड़ दिया। परिणामस्वरूप भाजपा को होने वाले नुकसान को उन्होंने खत्म कर दिया। यदि भाजपा-सेना गठबंधन होता और भाजपा को 130 सीटें भी मिली होतीं तो भी वे उसमें से 122 सीटें कभी नहीं जीत पाते। दूसरे, चुनाव में चौथे नंबर पर आने के साथ ही पवार ने भाजपा को अपनी पार्टी का बिन मांगे बिना शर्त समर्थन दे दिया, जिससे शिवसेना का सारा खेल बिगड़ गया। उद्धव ठाकरे ने सोचा था कि कुछ ज्यादा संख्या में आने के कारण वे भाजपा से मोल-तोल करेंगे, लेकिन भाजपा तो एकदम निश्चिंत हो गई और सेना को अंत में घुटने टेकने पड़े और बाहर से समर्थन देने का संकेत देना पड़ा।
तीसरे, पवार का असली ट्रंप कार्ड तो तब सामने आया जब उन्होंने यह भी घोषित कर दिया कि फड़नवीस सरकार के विश्वास-मत के समय राकांपा सदन में मतदान नहीं करेगी, जो इस बात का संकेतक था कि पवार नहीं चाहते हैं कि भाजपा को सरकार बनाने के मुद्दे पर कोई भी कष्ट हो और चौथा, वानखेड़े स्टेडियम को फड़नवीस सरकार के शपथ-ग्रहण समारोह के लिए निशुल्क देकर पवार ने रही-सही कमी भी पूरी कर दी। पवार के इस राजनीतिक दांव का कोई सानी नहीं और इसका पूर्वानुमान न तो भाजपा को था न शिवसेना को।
इन चालों का एक और परिणाम होते-होते बचा। पवार के कारण शिवसेना के विधायकों में इतनी बेचैनी बढ़ गई कि कयास लगाए जाने लगे थे कि कहीं उनमें भगदड़ न मच जाए और पार्टी में कहीं विभाजन न हो जाए। विभाजन के लिए 21 विधायकों का टूटना जरूरी था, पर उद्धव के नरम पड़ने से उसकी संभावना जाती रही और विधायकों को यह संकेत दे दिया गया कि आगे-पीछे वे सरकार में सम्मिलित होंगे। वे 15 वर्षों से विपक्ष में बैठ रहे थे और जब सत्ता भोगने का समय आया तो उद्धव उनको वंचित कर रहे थे। महाराष्ट्र के चुनाव परिणामों की कुछ बातें आश्चर्य पैदा करती हैं। एक, पच्चीस वर्षों में पहली बार किसी भी पार्टी को एक-सैकड़ा सीटें प्राप्त करने का मौका मिला।
इसके पूर्व 1990 में कांग्रेस को 141 सीटें मिली थीं और भाजपा को यह सफलता तब मिली जब उसका पूरे महाराष्ट्र में पार्टी-संगठन नहीं था, खास तौर पर उन निर्वाचन क्षेत्रों में जहां से शिवसेना चुनाव लड़ती रही है। अंतिम दो दिनों में 288 प्रत्याशियों का चयन करना और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार और विजय की रणनीति बनाना और उसमें से 122 सीटें जीतना अपने आप में कठिन बात है। दूसरे, भाजपा ने इस मिथक को भी तोड़ दिया कि शिवसेना का छत्रपति शिवाजी, बालासाहेब और मराठी-मानुस आदि पर कोई एकाधिकार है। पार्टी ने इन सभी अस्मिताओं पर दावेदारी ठोंकी और खासतौर पर मराठी-मानुस और भारतीय अस्मिता की पारस्परिकता स्थापित कर दी। इसमें प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों का विशेष योगदान रहा।
तीसरी महत्वपूर्ण बात है कि भाजपा ने महाराष्ट के सभी क्षेत्रों-उत्तर महाराष्ट्र, विदर्भ, मराठवाड़ा, मुंबई-ठाणे और पश्चिमी महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा सीटें और वोट प्राप्त किए। केवल कोंकण में शिवसेना को ज्यादा वोट और सीटें मिलीं, लेकिन चूंकि कोंकण में केवल 15 सीटें थीं इसलिए उसका कोई विशेष लाभ सेना को नहीं मिला। इतना ही नहीं, वैसे तो भाजपा को सभी समुदायों से वोट मिले, लेकिन चौंकाने वाली बात है कि उसे ग्रामीण, अद्र्धग्रामीण और शहरी, तीनों ही क्षेत्रों में सबसे ज्यादा वोट मिले। इससे लगता है कि महाराष्ट्र में भी उत्तर प्रदेश का मतदान-मॉडल दोहराया गया यद्यपि भाजपा का कुल वोट प्रतिशत महाराष्ट्र में 29.1 प्रतिशत रहा। महाराष्ट्र के असली खिलाड़ी पवार ने अपनी चालों से राकांपा का अधिकतम बचाव कर लिया।
यह जरूर है कि फड़नवीस सरकार पर चुनावी वादों को पूरा करने और भ्रष्ट प्रकृति वाली पार्टी के नेताओं पर मुकदमा चलाने का दबाव तो पड़ेगा, पर देखना है कि मुख्यमंत्री अपने चुनावी वादों (अजित पवार, छगन भुजबल आदि नेताओं पर मुकदमा चलाने) और पवार के प्रति अपनी पार्टी का ऋण चुकाने में कैसे संतुलन बनाते हैं। भाजपा ने महाराष्ट्र में एक साफ-सुथरी छवि वाले नेता को मुख्यमंत्री बनाया है। महाराष्ट्र को मोदी ने विकास का सपना दिखाया है। देखना है कि कैसे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री मिलकर उस वादे को निभाते हैं। संघ की यह चिंता जरूर होगी कि संगठन की जगह इधर एक-दो व्यक्तियों को सफलता का श्रेय क्यों और कैसे मिल रहा है, लेकिन महाराष्ट्र में इन तमाम खिलाडि़यों में पवार का स्थान अभी भी सबसे ऊपर है।
-कुमार गौरव 

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