Wednesday 21 November 2012

सूर्योपासना : वैदिक मान्यताएं

सूर्योपासना : वैदिक मान्यताएं
यह मानव शरीर पंच तत्व से बना है. इन पंच तत्वों के पांच देवता हैं. इस कथन की पुष्टि निम्नलिखित श्लोक से होती है-
आकाशस्य घियो विष्णुरगAेश्चेव माहेश्वरी।
वायो, सूर्य, क्षितेरिशो जीवनस्य गणधिप॥
आयुर्वेद के अनुसार शरीर के इन तत्वों में से किसी एक की विकृति से नाना प्रकार के रोग जन्म लेते हैं. इसका वर्णन चरक और सुश्रुत ग्रंथों में है. ऋगवेद के अनुसार सूर्य आत्मा जगतस्थस्थुपश्चअर्थात सूर्य ही ज्योतिरूप विभूषित है. इसका यह भी प्रमाण है
तथ्द्रास्कराय विद्राहे प्रकाशाय धीमाहि तन्नो मानु प्रचोदयात।
ब्रrा, विष्णु और महेश रूपी शक्तित्रयी सूर्य के अंगस्वरूप हैं. अथर्ववेदीय सूर्यापरिषद के अनुसार असावदित्यो ब्रrअर्थात सूर्य ही ब्रrा स्वरूप प्राणी जगत के संचालक हैं. चरक और सुश्रुत ग्रंथ के अनुसार वायु के देवता भी सूर्य हैं.
वैज्ञानिक धरातल के आधार पर इस पृथ्वी पर जीवन का स्नेत भी सूर्य है. सूर्य की अनुपस्थिति में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती. सूर्य किरण में बहुत ऐसे तत्व हैं, जिससे स्वस्थ जीवन का श्रृजन होता है. उपरोक्त शब्दावली से यह प्रमाणित होता है की सूर्य को एक महत्वपूर्ण तथा शक्तिशाली देवता के रूप में माना गया है.
सूर्य पूजा की पौराणिक परंपरा
वैदिक काल से ही पूजा की परंपरा रही है. पंचमहाभूत, पंचदेवता और पंचोपासना में अधिदेवता स्वरूप गणोश, शक्ति, शिव, विष्णु और सूर्य की परम्परा रही है. वैदिक और पौरणिक साहित्य में त्रिकाल संध्या, जलाजली, जप-तप, व्रत अध्र्यार्पण आदि सहित तांत्रिक उपासना में भी सूर्य पूजा निरंतर स्थापित रही है. डॉ. भगवत शरण उपाध्याय के अनुसार महाभारत के समय से ही सूर्य पूजा की परंपरा रही है. कुषाण सम्राट स्वंय सूर्योपासक थे. इसी प्रकार कनिष्ठ (78ई.) के पूर्वज भी शिव तथा सूर्य के उपासक थे.
भारत के वृहत इतिहास में श्रेनेत्र पाण्डेय ने लिखा है कि गुप्त सम्राटों के समय में सूर्य, विष्णु और शिव की उपासना होती थी. कुमार गुप्त (414-55ई) स्वंय कार्तिकेय के उपासक थे और स्कन्दगुप्त (456-67ई.) बुलन्दशहर के इंद्रपुर में सूर्य मंदिर बनवाया था. हर्षचरित में वर्णित है कि राजा हर्ष की सूर्योपासना चरम थी और वे सूर्य के नियमित उपासक थे. प्रतिहार शासन में भी सूर्य पूजा का वर्णन मिलता है.
लोक आस्था का यह पर्व पौराणिक काल से ही पूरी श्रद्धा और भक्तिभाव से मनाया जाता है. सूर्य की उपासना के इस पर्व का सबसे पहले उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है. ऐसी कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें सूर्य की महिमा और छठ पर्व को करने के विधान बताए गए हैं. विष्णुपुराण, भगवतपुराण, ब्रह्मपुराण में भी छठ पर्व का उल्लेख मिलता ही है. छठ व्रतका इन पुराणों में उल्लेख तो है ही, इसका उल्लेख ऋृगवेद में भी है. इसे लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं रामायण काल से लेकर महाभारत काल तक इसका उल्लेख मिलता है.
सूर्यपूजा का महत्व
रामायाण और महाभारत काल में श्री हनुमान के गुरु द्वारा उन्हें व्याकरण की शिक्षा देने तथा कुंती पुत्र कर्ण का नाम केवल सूर्यपुत्र के रूप में आता है, अपितु कर्ण की सूर्य भक्ति का भी वर्णन है. द्रौपदी के अक्षय पात्र और कृष्ण जांबावली के पुत्र साम्ब का कुष्ठ रोग मुक्ति का प्रसंग भी उस काल की सूर्याेपासना का ही प्रमाण है. कौरव और पांडव के पितृपुरुष के रूप में भी सूर्य का वर्णन मिलता है.
भगवान राम जब लंका विजय कर अयोध्या लौटे थे तब उन्होंने कार्तिक मास की षष्ठी को सूर्य की आराधना की थी. महाभारत काल में भी कुंती ने सूर्य की उपासना का यह पर्व किया था. पांडवों के वनवास के दौरान उनकी मंगलकामना के लिए द्रौपदी ने कार्तिक मास के षष्ठी को सूर्य की उपासना का व्रत रखा था.
एक और कथा के अनुसार भगवान कृष्ण के पुत्र शाम्ब कुष्ठ रोग से पीडित हो गए थे तब उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ भगवान सूर्य की तीन दिन तक उपासना की थी. पुराणों में वर्णित एक और कथा के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी सूर्य की उपासना की थी.
अस्ताचल और उदयाचल सूर्य को नमन करने से स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है, जो इस पर्व के वैज्ञानिक महत्व को दर्शाता है. कुछ क्षण सूर्य पर एक टक कर दृष्टि करने से त्रटक सिद्धिप्राप्त होने का वर्णन है. सूर्य वंश के प्र्वतक मनु को सूर्य भगवान ने स्वयं कर्मयोग की शिक्षा दी थी. कथाओं के अनुसार कुंती ने इसी दिन पुत्र लिए सायंकाल सूर्य को अध्र्य देकर पुत्र की कामना की और दूसरे दिन सूर्य ने कुंती को पुत्र प्रदान किया था.
पूजन की विधि
लोकमान्यता के अनुसार सूर्यपूजन छठ व्रतके रूप में प्रथमत द्रौपदी ने अपने पुत्रों के लिए की थी. स्मृति कौस्तुक तथा पुरुषार्थ चिंतामणी के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष को सूर्य जब वृश्चिक राशि में हो और मंगल दिन हो तो वह तिथि महाषष्टी है. ब्रrा पुरुषार्थ विधान है कि दिन का उपवास षष्ठी की अगिAपूजा तथा अगिAमहोत्सव के रूप में मनाया जाए.
मत्स्य पुराण में साठ व्रतों में इसका भी उल्लेख है. छठ यानी षष्ठ, प्रकृति के षष्ठ अंश की देवी है. इनका अमरनाथ देवसेना है. इस व्रत को सूर्य का व्रत माना गया है. पंचमी को उपवास तथा षष्ठी को सूर्य पूजा के उपरांत सप्तमी को व्रत का पारण के कार्तिक माह के साथ शुरू होता है.
इस व्रत की शुरूआत पंचमी तिथि से होती है. जिसे क्षेत्रीय भाषा में खरना या लोहड नाम से जाना जाता है. इसी दिन से व्रती उपवास करती है. बिना जल ग्रहण किए शाम को गुड़ या गóो का रस तथा नये चावल की खीर प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं. षष्ठी के दिन पुन उपवास कर फल, पकवान, मेवा, नारियल, औषधि फल इत्यादि को सूप में सजाकर संध्या काल सूर्य देव की पूजा नदी या जलाशय में सूर्यास्त से पूर्व दूध एवं जल से अध्र्य देकर की जाती है. सप्तमी को पुन: प्रात: सूर्योदयकाल में सूर्य की पूजा, पूर्व संध्या की तरह दूध और जल से अध्र्य देकर की जाती है. तत्पश्चात अगिA को साक्षी मान पूजन कर पावन व्रत की समाप्ति की जाती है.
-कल्याण कुमार सिन्हा

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