Thursday 5 December 2013

भ्रष्ट चुनावी हथकंडों पर नकेल


भ्रष्ट चुनावी हथकंडों पर नकेल

चुनाव आयोग की सफल कसरत

-कल्याण कुमार सिन्हा 

पांच राज्यों छत्तीसगढ, मिजोरम, मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के विधानसभा चुनावों की चुनाव प्रक्रिया ने यह भरोसा दिलाया है कि देश मे लोकतंत्र को दूषित करने वाले चुनावी भ्रष्टाचार पर नकेल कसी जा सकती है और अब बाहुबलियों अथवा थैलीशाहों से राजनीति को मुक्ति दिलाना असभव नहीं है. इन चुनावों में देश की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियां, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी अपने चुनाव प्रचार के क्रम में एक दूसरे के विरुद्ध गडे मुर्दे उखाडने और एक दूसरे पर ओछे आरोप मढने में मर्यादाएं लांघने की मानो होड करते रहे. इस दौरान चुनाव प्रचार और सार्वजनिक बहस का स्तर गाली गलौज तक गिरता नजर आया. हालांकि इस बात से यह निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है कि सम्भवत: अभी यह समय नहीं आया है कि चुनाव अभियान फिलहाल बिलकुल ही साफ सुथरा हो सकता है. लेकिन इस तथ्य से भी इकार नहीं किया जा सकता है कि भारतीय चुनाव आयोग की पिछले तीन दशकों की सफल कवायद ने इस आशा की किरण को तो जगा ही दिया है कि अगले कुछ समय में देश की राजनीति बाहुबली अपराधियों एवं थैलीशाह धनपिशाचों के शिकंजे से अवश्य ही मुक्त हो जाएगी. 

वस्तुत: यह सफाई तो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने अपने कार्यकाल से ही आरंभ कर दिया था. चुनाव आयोग ने आदर्श चुनाव आचरण संहिता के पालन सुनिश्चत कर चुनाव अभियान की काले धन पर आधारित फिजूलखर्ची तथा प्रदूषण को दूर करने के लिए मौजूदा कानूनों के ही आधार पर अनेक सार्थक कदम उठाए हैं. इसके बाद पिछले कुछ वर्षो में सूचना के अधिकार वाले कानून का लाभ उठा कई साधारण लोगों ने दागी प्रत्याशियों को ही नहीं, अनेक दिग्गजों को भी बेनकाब किया और यह संकेत दे दिया कि उनका भरपूर समर्थन इस 'सफाई अभियान' को है. हवाला और अलग-अलग साधनों से चुनाव के लिए काले धन की आवाजाही पर भी रोक लगाने का काम प्रभावी साबित हुआ है. चुनावी भ्रष्टाचार दूर करने के आयोग के इन कदमों ने दुनिया भर मे हमारे लोकतंत्र को गौरान्वित किया है.
फिलहाल इन विधानसभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने एक कदम और आगे बढकर मीडिया को भी साधने का सफल उपक्रम भी किया है. प्रायोजित चुनाव सर्वेक्षणों के चैनलों पर प्रसारण और समाचार पत्रों में छपने वाले पेड न्यूज जैसे भ्रष्ट हथकंडों पर इस बार प्रभावी रोक भी नजर आई है. यह इतना आसान भी नहीं था. किसी भी लोकतांत्रिक देश मे सन्चार साधनों पर ऐसी नकेल साधारण बात नहीं है. लेकिन चुनाव आयोग का दायित्व है कि वह मतदाताओ के लिए स्वतंत्र एव निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित कराए. हालांकि इसके लिए उसके पास ऐसे बाध्यकारी अधिकार नहीं है कि वह राजनीतिक दलों को अपनी सीमा में रहने को बाध्य कर सके. और ऐसे बंधनों को आसानी से स्वीकार करना हमारे राजनीतिक दलों की फितरत में कहा है. उनके भ्रष्टाचार या आपराधिक आचरण पर न्यायपालिका शिकंजा कसता है तो यह दलील दी जाती है कि यह चुनाव आयोग का कार्याधिकार क्षेत्र है. जब आयोग हरकत में आता है तो वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने और चुनावों के जनतांत्रिक स्वरूप को नष्ट करने का संकट उत्पन्न करने के आरोपों की बौछार करना शुरू कर देते हैं. इतना ही नहीं, चुनाव आयोग या सूचना आयोग की बात तो दूर, सुप्रीम कोर्ट तक को यह सलाह (इसे उनकी ‘चेतावनी’ ही थी) दी जाती रही कि वह 'लक्ष्मण रेखा' का उल्लंघन न करे. दावा यह है कि कानून निर्मात्री संसद या विधायिका ही लोकतंत्र में संप्रभु है. विडंबना यह है कि ये कानून बनाने वाले यह समझने से स्वय कतराते रहे हैं कि संस्था की संप्रभुता व्यक्ति विशेष को हस्तांतरित नहीं हो सकती. साथ ही जनप्रतिनिधित्व कानून' को ढाल नहीं, ये तलवार बना कर भांजने से बाज नही आए. उनके यह सारे आचरण इस दौरान देखने को मिले.
आयोग के लिए सबसे बडी अड़चन या लाचारी यह है कि उसकी की दंड देने की क्षमता या अपने आदेशों को लागू करवाने की उसकी साम‌र्थ्य बहुत सीमित है. वह केवल राजनीतिक दलो को और उनके नेताओ को भाषणो मे सयम, शालीनता एव शिष्टाचार बरतने की ताकीद कर सकता है और न मानने पर उनकी भर्त्सना कर सकता है. राजनीतिक दलों को डर केवल इस भर्त्सना का इसलिए होता है कि मतदाताओं पर उसका विपरीत प्रभाव न पड जाए. इस चुनाव के प्रचार में काग्रेस को भाजपा ने जहरीला कहा तो कांग्रेस ने भाजपा को लुटेरा’ बता दिया. ऐसे अनेक मामले सामने आए. हर बार शिकायत ले, दोनों चुनाव आयोग से गुहार लगाते भी नजर आए. इसका उद्देश्य एक दूसरे को मतदाता की नजर में गिराना रहा. आयोग ने दोनों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया और जवाब पर नाराजगी भी जताई. इसमें आयोग की वह ताकत नजर आई, जो उसे देश के मतदाता से मिली है, किसी कानून से नहीं. इतनी कसरतों के साथ भारतीय चुनाव आयोग मताध राजनीतिक दलों को औकात में रखते हुए इन विधानसभा चुनावों की चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता बहुत हद तक कायम रख पाया है तो इसे देश और अपने दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र की सफलता के लिए शुभ संकेत माना जाना चाहिए.
-कल्याण कुमार सिन्हा
समाचार सम्पादक (सेवा निवृत), लोकमत समाचार
122/6 मित्र नगर, वेस्ट मानेवाडा रोड,
नागपुर 440027 (महाराष्ट्र).


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