Thursday 31 July 2014

सत्ता का मद ठीक नहीं!

सत्ता का मद ठीक नहीं!

शिवसेना सांसदों की उग्रता, आपराधिक कृत्य

जन-प्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे लोकतंत्र की मर्यादा के अनुरूप आचरण करें. किन्तु समय-समय पर मर्यादा की हदें पार कर जाने की जो वारदातें सामने आती हैं, वह अत्यंत निराश करने वाली होती हैं. ताजा मामला नई दिल्ली स्थित न्यू महाराष्ट्र सदन में ठहरे शिवसेना सांसदों के व्यवहार का है. इन सांसदों की मांग थी कि उन्हें महाराष्ट्र के व्यंजन परोसे जाएं. न्यू महाराष्ट्र सदन में खानपान की जिम्मेदारी आइआरसीटीसी को सौंपी गई है, जो भारतीय रेल में खानपान सेवा संचालित करती है. ये सांसद कई दिन से सदन में बिजली, पानी, साफ-सफाई, भोजन-व्यवस्था आदि से जुड़ी शिकायतें कर रहे थे. पिछले दिन इन्होंने प्रेसवार्ता बुलाई और फिर संवाददाताओं के साथ भोजन कक्ष में गए और वहां रखे बर्तन वगैरह उठा कर फेंकना शुरू कर दिया. वहां तैनात कर्मचारियों को अभद्र शब्द कहे. फिर रसोई में गए, जहां आइआरसीटीसी के आवासी प्रबंधक अरशद जुबैर कर्मचारियों को भोजन आदि से संबंधित निर्देश दे रहे थे. खबर है कि इन सांसदों ने उनकी गर्दन पकड़ी और उनके मुंह में जबरन रोटी ठूंस दी. जुबैर उस वक्त रोजे पर थे. उनकी धार्मिक भावना को जो ठेस पहुंची होगी, उसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. जुबैर ने अपनी वर्दी पहन रखी थी और उस पर उनके नाम की पट्टिका भी लगी थी. फिर भी शिवसेना सांसदों ने उनके साथ यह दुर्व्यवहार किया तो यह कहना शायद गलत नहीं होगा कि ऐसा जानबूझ कर किया होगा. कुछ सांसदों की यह सफाई कि उन्हें पता नहीं था कि वह कर्मचारी मुस्लिम था, से उनका अपराध कम नहीं हो जाता. किसी के साथ भी इस तरह के व्यवहार आपराधिक ही माना जाएगा.  फर्ज कीजिये, गुस्से में उस कर्मचारी ने उनमें से किसी एक सांसद को बदले में एक चांटा ही जड़ दिया होता, तब? बात कहां से कहां जा पहुंचती!  

शिवसेना के नेताओं, कार्यकर्ताओं की उग्रता किसी से छिपी नहीं है, खासकर मुसलिम समुदाय के प्रति उनका बैर-भाव जब-तब उजागर होता रहा है. लेकिन पार्टी के सांसदों ने जिन्होंने संविधान की रक्षा की शपथ ली है और जिन पर कानून बनाने एवं उसके पालन का दायित्व है, उन्हें इस प्रकार के आपराधिक कृत्य करना क्या शोभा देता है? क्या उनकी निगाह में कानून का कोई मूल्य नहीं है? क्या अपने सांसद होने की गरिमा का इन्हें तनिक खयाल नहीं है? हालांकि इस घटना पर न्यू महाराष्ट्र सदन के आवासी आयुक्त ने आइआरसीटीसी और अरशद जुबैर से माफी मांग ली है, महाराष्ट्र के मुख्य सचिव ने घटना की जांच कराने के बाद उचित कार्रवाई का वचन भी दिया है. मगर इस तरह अरशद की भावनाओं को तो ठेस पहुंचीचोट पर मरहम नहीं लगाया जा सकता. इन दिनों रमजान चल रहा है और रोजा रखे किसी व्यक्ति के उपवास धार्मिक फर्ज होता है. ऐसे में इन सांसदों ने अरशद के मुंह में जबरन रोटी ठूंसी तो यह उनकी आस्था को चोट पहुंचाने के लिए ही किया होगा. इससे मुसलिम समुदाय के प्रति शिवसेना की नफरत की भावना एक बार फिर जाहिर हुई है. 

तो क्या सांसद बन जाने के बाद भी वे पूरे देश और पूरे समाज के लिए नहीं सोचते? वहां खानपान को लेकर एतराज को इस तरह जाहिर करना लोकतांत्रिक व्यवस्था में उनके विश्वास पर भी सवालिया निशान लगाता है. इसके लिए वे रसोई का ठेका किसी और कंपनी को दिलाने का सुझाव दे सकते थे. मुख्यमंत्री से शिकायत कर सकते थे, संसद में मामला उठा सकते थे, प्रधानमंत्री और रेलमंत्री से आईआरसीटीसी की शिकायत कर सकते थे. उनके पास इस समस्या से निपटने के ढेर सारे विकल्प थे, लेकिन उन्होंने इनमें से किसी विकल्प को नहीं चुना और ऐसा कृत्य किया, जो गुनाह या अपराध की श्रेणी में आता है. 

शिवसेना के लोग संयम नहीं जानते. जिस तरह वे जोर-जबर्दस्ती से अपनी बात मनवाने के आदी रहे हैं, पार्टी के सांसद भी उसी तरीके से न्यू महाराष्ट्र सदन में पेश आए. इस मामले में शिवसेना अफसोस जताने के बजाय अपने सांसदों की बदसलूकी को जायज ठहराने में लगी है. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे  का इस मामले में यह कथन कि उनकी पार्टी हिन्दुत्ववादी होते हुए भी किसी धर्म का अपमान नहीं करती, उद्धव की यह टिप्पणी बहुत कुछ कह जाती है. शिवसेना का इतिहास बताता है की जब-जब वह सत्ता में होती है, तब-तब उसका रवैया ऐसा ही गैरजिम्मेदाराना हो जाता है. शिवशाही के दिनों में शिवसेना नेता और कार्यकर्ता इसी तरह सरकारी अधिकारियों और आम लोगों के साथ पेश आते थे. तब उनके ऐसे कृत्यों का समर्थन करते हुए सेना सुपीमों स्व. बालासाहब ठाकरे कहा करते थे कि 'हम ठोकतंत्र में विश्वास करते हैं.' आज लगता है सेना में वही सोच फिरसे काम करने लगा है. 

सेना आज केंद्र में सत्ता में आई है तो उसके पीछे नरेंद्र मोदी का करिश्मा है, मोदी की बदौलत ही आज वे इस मुकाम पर हैं. यह बात उन्हें और भाजपा को भी याद रखना चाहिए. भाजपा को अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से सीखना चाहिए, जिन्होंने अपने सहयोगी दल के सेना सांसदों के इस आचरण को गलत बताने में एक मिनट का भी देर नहीं लगाया. आगामी विधानसभा चुनावों के बाद उद्धव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनाने के ख्वाब देख रहे हैं और भाजपा भी राज्य की सत्ता का स्वाद चखने को आतुर है तो दोनों को यह याद रखनी चाहिए कि पिछले लोकसभा चुनावों में ताजी के मुस्लिम मतदाताओं ने भी नरेंद्र मोदी और उन पर भरोसा कर उन्हें वह चुनाव ऐसे भारी बहुमत से जिताने में मदद की थी. मुस्लिमों के प्रति यदि उनका यही रवैया रहा तो सारे ख्वाब धरे रह जाएंगे. ऐसी गंभीर आपराधिक कृत्य कर भी माफी मांगने के बजाय दंभयुक्त बयानबाजी शोभा नहीं देता. 

शिवसेना को इस मामले को संवेदनशीलता के साथ लेना चाहिए और न केवल आइआरसीटीसी के आवासी प्रबंधक अरशद जुबैर से माफी मांगनी चाहिए, बल्कि अपने दोषी सांसदों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई भी करनी चाहिए. ताकि भविष्य में  ऐसी गैरजिम्मेदारी का परिचय दुबारा न दे बैठें. उन्हें ध्यान देना चाहिए कि उनके सांसदों के इस कृत्य से पूरा देश आहत हुआ है. इस तरह का व्यवहार आपराधिक भी और सत्ता के दुरुपयोग का भी मामला है. देश इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता. खास कर उन लोगों से जो सत्ता में बैठ कर भी ऐसे कृत्य करने से बाज नहीं आते. 

- कल्याण कुमार सिन्हा 

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