भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ जाग रही जनता
राज्य में शायद ही कोई दिन ऐसा है, जिस दिन कोई रिश्वतखोर लोकसेवक न पकड़ा गया हो. ब्यूरो के इन सफल अभियानों के बावजूद भ्रष्ट लोकसेवकों में ब्यूरो की इन कार्रवाइयों का भय पैदा न हो पाना अत्यंत चिंता का विषय हो गया है. अमरावती के इन दो बड़े अधिकारियों में आदिवासी विकास विभाग के अपर आयुक्त और जिला स्वास्थ्य अधिकारी स्तर के अधिकारी का भी ऐसे रंगेहाथ रिश्वतखोरी के आरोप में गिरफ्तार होना, क्या इस बात का परिचायक नहीं है कि राज्य के हर स्तर के लोकसेवकों में अपने ओहदों का बेजा फायदा उठाते हुए केवल पैसा बनाने की होड़ सी मची हुई है, लोक-लाज और गिरफ्तारी की भी उन्हें कोई चिंता नहीं रह गयी है.
भ्रष्ट तरीकों से अपने पदों का दुरूपयोग कर, राज्य की जनता की गाढ़ी कमाई की लूट कर एवं आम लोगों के जायज भुगतान के बदले उनका हक मार कर पैसे बनाने की ऐसी निर्लज्जता का कोई जवाब है? सरकार या ब्यूरो भले ही मान ले कि अब इसका उपाय नहीं है, क्या करें! लेकिन उपाय तो है. इन भ्रष्ट मानसिकता वाले लोकसेवकों को मौजूदा भ्रष्टाचार प्रतिबंधक कानून का भय इसलिए नहीं है, क्योंकि उन्हें पता है कि कैसे इस कानून को न केवल धता बताया जा सकता है, बल्कि उन्हें यह भी पता है कि कैसे इन आरोपों से बेदाग़ बरी हुआ जा सकता है.
ऐसे भ्रष्ट लोकसेवक इस भ्रष्ट कमाई का ही उपयोग कर आसानी से बेदाग छूट जाने में सफल हो जाते हैं. और शान से दुबारा अपने उसी पद पर या पदोन्नत हो ऊंचे पद पर फिर से आसीन हो जाते हैं. इसका कारण है हमारे महाराष्ट्र राज्य के भ्रष्टाचार प्रतिबंधक कानून की कमजोरियां. पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में यह कार्य लोकायुक्त के अधीन लोकायुक्त पुलिस यह काम करती है. मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें भ्रष्ट लोकसेवकों की चल-अचल सारी संपत्ति जब्त करने के कानून से लैस कर दिया है. उनकी संपत्ति तब-तक जब्त है, जब-तक न्यायालय से वह बेदाग़ बरी न हो जाता है. दोषी करार दिए जाने पर जेल की हवा तो उन्हें खानी पड़ती ही है, सम्पत्ति से हमेशा के लिए भी हाथ धोना पड़ता है.
महाराष्ट्र में भी लोकायुक्त हैं, लेकिन दंतविहीन और संसाधनों से वंचित. अब समाजसेवी अन्ना हजारे की प्रेरणा से केंद्र सरकार ने भी काफी जद्दो-जहद के बाद लोकायुक्त कानून पारित कर दिया है, जो राज्यों के लिए भी है. हमारा राज्य इसे लागू करे तो शायद आजे इन भ्रष्ट लोकसेवकों में भय पैदा हो. कानून के डंडे में प्रहार की चोट तब शायद ऐसे तत्वों को महसूस होगी और लोक-लाज की चिंता होगी.
यह सबको पता है कि भ्रष्टाचार की गंगोत्री सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोकसेवकों के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों एवं सरकार के मंत्रियों के कर-कमलों से ही होकर बहती है. लेकिन इनके खिलाफ जब भी सप्रमाण मामले सामने आते हैं, जांच समितियों के दस्तावेजों से बाहर निकल कर भी सत्ता के जलियारों में गुम हो जाते हैं. भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहती रहती है. लेकिन अब जल्द ही लोकायुक्त कानून के प्रहार की धमक की आवाज सत्ता के शिखर पर बैठे इन दिग्गजों पर भी सुनाई पड़ेगी. जनता जाग चुकी है. महाराष्ट्र के भ्रष्टाचार प्रतिबंधक ब्यूरो को रोज-रोज राज्य भर में जो सफलता मिल रही है, उसके पीछे भ्रष्टाचार से तंग आ चुकी राज्य की जनता की जागरूकता ही है. जनता भ्रष्टाचार के शिकायत करना सीख चुकी है. जल्द ही इसका मुखर विरोध करना भी सीख जाएगी. यह दिन अधिक दूर नहीं है.
- कल्याण कुमार सिन्हा
No comments:
Post a Comment