Monday 16 September 2013

विकास के द्वंद्व


मुद्दा नियामगिरि का


‘विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण’ का अहम् मुद्दा एक बार फिर उड़ीसा में भारतीय अप्रवासी की ब्रिटिश कंपनी वेदांत रिसोर्सेज की बॉक्साइट खनन और बॉक्साइट रिफायनरी परियोजना पर रोक के रूप में सामने आया है. उड़ीसा की बीजू जनता दल सरकार की उड़ीसा माइनिंग कारपोरेशन तथा स्टरलाइट बॉक्साइट खनन परियोजना के दूसरे चरण की 1.7 अरब डालर की विस्तार योजना अब जहां पर्यावरण संरक्षण की भेंट चढ़ चुकी है, वहीं राज्य के लांजीगढ़़, कालाहांडी और रायगढ़ा जिलों में फैले नियामगिरि पहाड़ी क्षेत्र में बसने वाले डोंगरिया आदिवासियों के एक बड़े समूह की आस्था, अस्मिता और अस्तित्व पर आसन्न संकट ‘टल’ गया है.
केंद्र में सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की प्रमुख राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने गुरुवार को उड़ीसा के लांजीगढ़ जिले के जगन्नाथपुर गांव में ‘आदिवासी अधिकार दिवस’ के अवसर पर एक रैली को संबोधित करते हुए बॉक्साइट खनन कंपनी वेदांत की खनन परियोजना को वहां खनन के लिए पर्यावरणीय अनुमति नहीं दिए जाने के फैसले की प्रशंसा करते हुए इसे स्थानीय आदिवासियों की जीत करार दिया.
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रलय की वन सलाहकार समिति ने पिछले शनिवार को वेदांत रिसोर्सेज के उड़ीसा राज्य के नियामगिरि पहाड़ी क्षेत्र में खनन पर रोक लगाने की सिफारिश करने वाली एन.सी. सक्सेना समिति की रिपोर्ट को स्वीकार कर उसकी 1.7 अरब डालर की इस परियोजना की मंजूरी खत्म करने का रास्ता साफ कर दिया था. समिति ने बताया कि वेदांत ने प्रस्तावित स्थल पर राज्य सरकार के अधिकारियों की मिलीभगत से अनेक पर्यावरणीय और वन्य कानूनों का उल्लंघन किया है. समिति का कहना था कि प्रस्तावित खनन परियोजना को मंजूरी देना ठीक नहीं होगा, क्योंकि इससे दो स्थानीय जनजातियों के वन अधिकारों का हनन होगा.
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने अपने मंत्रलय की इस महत्वपूर्ण समिति की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए अपने मंत्रलय के फैसले की घोषणा करते हुए कहा, ‘उड़ीसा सरकार और वेदांत के नियामगिरि पहाड़ी क्षेत्र में खनन से पर्यावरण संरक्षण कानून, वन संरक्षण और अधिकार कानून का गंभीर उल्लंघन हुआ है. इसीलिए लांजीगढ़़, कालाहांडी और रायगढ़ा जिलों में फैले नियामगिरि पहाड़ी क्षेत्र में राज्य के स्वामित्व वाली उड़ीसा माइनिंग कारपोरेशन तथा स्टरलाइट बाक्साइट खनन परियोजना के दूसरे चरण की वन मंजूरी नहीं दी जा सकती.’
हालांकि सक्सेना समिति ने उपरोक्त कानूनों के उल्लंघन में उड़ीसा माइनिंग कारपोरेशन तथा राज्य के वन एवं पर्यावरण विभाग और खनन विभाग के अधिकारियों को भी दोषी ठहराया है, लेकिन वन एवं पर्यावरण मंत्री रमेश ने उन्हें राज्य के हित में काम करना मान कर आरोप मुक्त किया है, अर्थात क्लीन चिट दी है. सरकार के इस फैसले के दो दिनों बाद ही इस विवादग्रस्त परियोजना क्षेत्र में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी द्वारा सरकार के इस फैसले का समर्थन कर और क्षेत्र के आदिवासियों की इस परियोजना के विरुद्ध छेड़ी गई लड़ाई को उनकी जीत करार दिया जाना भले ही राजनीतिक रूप से आलोचना का विषय माना जा सकता है, लेकिन इससे न केवल उड़ीसा, बल्कि देश भर के लोगों के इस भरोसे को बल मिला है कि विकास के नाम पर कांग्रेस के राज में न केवल उनके हितों की रक्षा होगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण जैसे ज्वलंत मुद्दे की अनदेखी नहीं की जा सकेगी. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि पर्यावरण को क्षति पहुंचाकर किया जाने वाला औद्योगिक विकास अंतत विनाशकारी ही साबित होता है. अत पर्यावरण संरक्षण की कीमत पर ऐसे किसी उद्योग को अनुमति नहीं दी जा सकती.
हालांकि वेदांत की इस विस्तार परियोजना को लेकर उड़ीसा सरकार की भूमिका भी इस मामले में संदेह के घेरे में आ गई है. राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की इस मामले को लेकर सामने आई प्रतिक्रिया गोलमोल ही है. उधर ब्रिटिश कंपनी वेदांत रिसोर्सेज और उसके प्रवर्तक अनिल अग्रवाल की विश्वसनीयता एक बार फिर संदेह के घेरे में है. अनिल अग्रवाल छत्तीसगढ़ की उस अल्युमिनियम कंपनी बाल्को के मालिक हैं, जिसका स्वामित्व कभी भारत सरकार के पास था. सन् 2001 में सरकार की विनिवेश योजना के तहत उन्होंने इस कंपनी की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी 551 करोड़ रुपए में हासिल की थी. इस सौदे को लेकर उठे विवाद में उनका नाम सामने आया था. इसके बाद पिछली 23 सितंबर 2009 बाल्को की विस्तार योजना के अंतर्गत बिजली संयंत्र के लिए बनाई जा रही 270 मीटर की चिमनी 230 मीटर बनने के बाद जब ढह गई और उस दुर्घटना में 41 मजदूरों की मौत हो गई तो स्वयं बाल्को कंपनी के साथ-साथ चिमनी निर्माण कर रही दो कंपनियों, जिनमें एक चीनी थी और एक भारतीय, की जो भूमिका रही उससे वेदांत रिसोर्सेज की खासी किरकिरी हुई थी.
उड़ीसा की नियामगिरि पहाड़ियों में वेदांत की विस्तार योजना में पर्यावरण संरक्षण कानून, वन संरक्षण और अधिकार कानून के साथ-साथ स्थानीय निवासियों के हितों के साथ जो मजाक किया गया, उसके चलते वेदांत के साथ-साथ उड़ीसा सरकार भी सवालों से घिर गई है. यह न केवल कानून के साथ, बल्कि उड़ीसा की जनता के साथ भी खिलवाड़ जैसा ही है. उड़ीसा देश के उन पिछड़े राज्यों में एक है, जिसके पास अकूत प्राकृतिक खनिज संपदा तो है, किंतु उसका दोहन हमेशा गलत तरीकों और गलत हाथों से होता चला आया है. बॉक्साइट जैसे महत्वपूर्ण खनिज के मामले में उड़ीसा का बाक्साइट भंडार देश में सबसे बड़ा करीब 153 करोड़ टन है, जो अनुमानत विश्व का चौथा बड़ा बॉक्साइट भंडार है. राज्य के क्यांेझोर, सुंदरगढ़, फुलबनी, बोलांगीर, बारगढ़, कालाहांडी, रायगढ़ा और कोरापुट जिलों में करोड़ों टन बॉक्साइट मिट्टी की मोटी सतह के नीचे दबा हुआ है. इसके अलावा लौह एवं अन्य खनिज संपदा के साथ ही राज्य का पर्यावरण भी अत्यंत सुंदर है. हर हाल में  इसका संरक्षण सरकार और देश का दायित्व है.

-कल्याण कुमार सिन्हा

27 अगस्त 2010 को लोकमत समाचार में प्रकाशित

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