Monday 16 September 2013

संजो लें बूंदों को


रेन वाटर हार्वेस्टिंग बना वक्त का तकाजा


पानी की कमी की समस्या ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समान रूप से गंभीर होती जा रही है. देश में शहरीकरण तेजी से हो रहा है. छोटे शहरों में जलसंकट की ओर तो किसी का ध्यान नहीं जाता, वहां लोग ङोल लेते हैं. लेकिन बड़े शहरों और महानगरों का जल संकट आज जिस तरह से लोगों को बेबस करता जा रहा है, उसकी आंच अब हर आम-ओ-खास महसूस करने लगा है.
ग्रामीण क्षेत्रों में तो फिर भी तालाब, आहर, पइन, कुएं खोदने की गुंजाइश है. लेकिन शहरों में इन जल ोतों की न केवल भारी कमी है, बल्कि इन ोतों को बनाने अथवा जल के संरक्षण की व्यवस्था कर पाना कठिन हो गया है. क्योंकि शहरी आबादी इन ोतों के लिए भूमि ही नहीं बचने दे रही. महानगरों और बड़े शहरों में सरकार या नगर निकाय तालाब बनाए तो बनाए कहां. अपार्टमेंट में रहने वाले लोग तो स्वीमिंग पुल ही बनाएंगे, जो पानी का संरक्षण करने की बजाय अपव्यय ही करता है. बड़े-बड़े अपार्टमेंटों से भरे कंक्रीट के इन जंगलों में जल-संरक्षण आखिर किया जाए तो कैसे?
ऐसे में पिछले कुछ वर्षो में ‘वर्षा जल संचय’ (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) की अवधारणा शहरी क्षेत्रों में जोर पकड़ने लगी है. रोजमर्रा की जरूरतों के लिए शहरों में कम पड़ रही जलापूर्ति की समस्या यह एक बहुत कारगर समाधान है. वर्षा के पानी को बह कर बर्बाद होने से बचा कर उसका संचय करना ही यह ‘वर्षा जल संचय’ अथवा रेन वाटर हार्वेस्टिंग  है. वर्षा के पानी को आज बचा कर रखने के लिए उपाय किए जाने लगे हैं. बड़े-बड़े अपार्टमेंट में रहने वाले, बड़े बंगलों में रहने वाले; स्कूल, महाविद्यालय, बड़े सरकारी भवनों, कार्यालयों बड़े होटलों आदि के लिए यह रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली की व्यवस्था तो नितांत आवश्यक है ही, छोटे मकानों में रहने वाले शहरी के लिए भी वर्षा जल संचय अब बहुत ही जरूरी हो गया है.
इसके लिए बड़े भवनों और मकानों के पास जमीन में टैंक बना कर बरसात के दिनों में पड़ने वाले वर्षा के पानी को छान कर इन टैंकों में संगृहीत किया जाता है. इसके साथ ही बाकी के वर्षा के पानी को कुओं और अन्य गड्ढों में जमा किया जाता है. यह पानी इतनी अधिक मात्र में संगृहीत हो जाता है कि साल भर इसका उपयोग लोग अपने घरों, कपड़ों, वाहनों की साफ-सफाई और अपने फूल-पत्ताें को सींचने में तो करते ही हैं, पीने में भी इसका उपयोग बखूबी कर लेते हैं. जल संकट से त्रस्त रहने वाले चेन्नैवासी पिछले तीन वर्षो से इसी वर्षा जल से अपने पेयजल संकट का भी समाधान कर रहे हैं. वहां की अनेक हाउसिंग सोसायटियां ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली ’ की व्यवस्था कर उसका बखूबी उपयोग कर रही हैं. पेयजल की कमी पर उसी वर्षा जल को उबाल कर वे बेखौफ उसे पी भी रहे हैं. ऐसा केवल चेन्नै में ही नहीं कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात के भी अनेक शहरों में प्रचलित होता जा रहा है.
अब तो देश के अनेक शहरों में इस दिशा में सराहनीय प्रयास शुरू हो गए हैं. पुणो की एक भवन निर्माण कंपनी अपने भवनों व फ्लैटों में वर्षा जल के संचयन प्रणाली की आधुनिक तकनीकों का प्रयोग कर रही है. लाखों वर्ग फुट क्षेत्रफल में निर्मित इसके आवासीय परिसर में छह हजार फ्लैट हैं. इस परिसर में उन्होंने वर्षा जल संरक्षण प्रणाली की पूरी व्यवस्था की है. इसके लिए पूरे परिसर को तीन क्षेत्रों में बांटा गया है. पूरे क्षेत्र में होने वाली वर्षा के जल को संगृहीत करने के लिए ‘नेचर पार्क’ और उद्यान बनाए गए हैं, ताकि भूमि का जल वाष्पीकरण तथा अन्य कारणों से बर्बाद न हो. प्रत्येक क्षेत्र में जगह-जगह रेत व धातु से निर्मित गड्ढे बनाए गए हैं, जो जमीन के नीचे व ऊपर दोनों जगह हैं. वर्षा जल संचय के लिए इन गड्ढों को फ्लैटों की छतों व सतहों से पाइप लाइनों से जोड़ा गया है.
इस प्रकार वर्षा जल को ‘पम्प’ में संगृहीत किया जाता है. इस जल को वृक्षारोपण और भू-जलस्तर बढ़ाने में उपयोग किया जाता है. इसके अतिरिक्त इस जल को समय पड़ने पर बागवानी, वाहन साफ करने जैसे अन्य कार्यो में भी इस्तेमाल किया जाता है. संरक्षित जल को पास के तालाब या कुएं में भी छोड़ा जाता है, जिसका उद्देश्य इन जैसे ोतों में जल की उपलब्धता बनाए रखना है.
इस भवन निर्माता ने अपने इस बड़े प्रयोग के अलावा और अन्य छोटे-छोटे प्रयोग भी किए हैं. इसके तहत बड़े-बड़े अपार्टमेंटों में वर्षा जल संरक्षण प्रणाली लगाने, पर्यावरण के अधिकाधिक अनुकूल बनाने जैसे काम उन्होंने किए हैं. आस-पास के गांवों, जहां पानी की कमी रहती है, में भी उन्होंने अपनी तकनीक का उपयोग कर समस्या का समाधान किया है.
इन प्रयासों का मुख्य केन्द्र बिन्दु आम जन की सहभागिता के साथ कुशल जल-प्रबंधन करना है. वर्तमान स्थिति में तेजी से कम होती जल की मात्र को संरक्षित करने में इस प्रकार के प्रयास सहायक सिद्ध हो रहे हैं. वर्षा से प्राप्त जल या तो बहकर बेकार चला जाता है या फिर वाष्पीकरण के कारण खत्म हो जाता है. ऐसे में भवनों व फ्लैटों में वर्षा जल संचयन तकनीक का प्रयोग जल प्रबंधन के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है.
हालांकि अनेक जागरूक लोग और संस्थाएं शहरों में जल संरक्षण की इस अवधारणा के प्रचार-प्रसार में जुटी हैं, लेकिन आम शहरी अभी भी इसके प्रति जागरूक नहीं हो पाया है. पानी की बर्बादी रोकने की बात दूर, आम आदमी जल संकट से जूझते रहने के बावजूद रोज-रोज पानी बर्बाद करने से नहीं चूकता.
लोगों में जल संरक्षण और वर्षा जल संचय के प्रति जागरूकता पैदा करना वक्त का तकाजा है, अन्यथा पर्यावरण पर संकट की तरह आने वाले दिनों में पानी का संकट भी विकराल रूप धारण करने वाला है. कल इस संकट को संभाल पाना किसी के बूते की बात नहीं रह जाएगी. धरती के लिए जैसे पर्यावरण का संकट भयावह होता जा रहा है, वैसे ही पानी का संकट पूरी मानवता को ही निगलने वाला साबित हो जाएगा. जानकार भविष्यवाणी कर रहे हैं कि भविष्य का महायुद्ध पानी के बंटवारे या उसके स्नेतों पर अधिकार जमाने के लिए हो सकता है. आज भी अनेक शहरों में पेयजल के लिए नलों और टैंकरों के आगे लगती लंबी-लंबी कतारों और वहां की थोड़ी सी अव्यवस्था अथवा गड़बड़ी को लेकर खूनी संघर्ष से लेकर हत्या तक की होने वाली वारदातें क्या भविष्य में पैदा होने वाले संकट के पूर्वाभास नहीं कराते? अपने ही देश में तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच वर्षो से कावेरी नदी के जल के बंटवारे को लेकर चल रही तकरार भारत पाक सीमा पर रावी, सतलज और चेनाब नदियों के जल के लिए पाकिस्तान से रंजिश भी क्या इस समस्या के उदाहरण नहीं हैं?
इतना ही नहीं, विकास से जुड़े संसाधनों में भी पानी ही सबसे महत्वपूर्ण साधन है. पानी से न केवल आम आदमी की जिंदगी चलती है, बल्कि तमाम कल कारखाने, बिजली, कृषि सभी पानी की उपलब्धता पर निर्भर हैं. ऐसे में पानी की कमी विकास के लिए भी संकट उत्पन्न कर रहा है. दुनिया भर के देशों के नीति निर्माता भी अब यह मानने लगे हैं कि पर्यावरण के संरक्षण के साथ-साथ पानी का संरक्षण भी अब अत्यंत आवश्यक हो गया है.
महाराष्ट्र में पहल
नागपुर और पूरे महाराष्ट्र में भी पिछले कुछ वर्षो से जल संकट का नाग फुंफकारने लगा है. इसे ध्यान में रख राज्य के शहरी विकास विभाग ने राज्य भर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली को अनिवार्य बनाने की दिशा में सराहनीय प्रयास तो किए हैं. इसे नागपुर महानगर पालिका (एनएमसी) ने भी अपनाया है. एनएमसी के नगर आयोजना विभाग के उस प्रस्ताव को राज्य सरकार के शहरी विकास विभाग ने हरी झंडी दिखा दी है, इसमें उन सभी नए आवासीय परिसरों के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली लगाना अनिवार्य है, जिनका रकबा 150 वर्ग मीटर से अधिक है. पूर्व में शहरी विकास विभाग ने 5000 वर्ग मीटर तक के निर्माण के लिए इस प्रणाली को अनिवार्य किया था. अब एनएमसी इस अभिनव कदम को अंजाम देने में पता नहीं क्यों हिचक रही है.
एनएमसी भवन निर्माताओं को भवन निर्माण के साथ ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली लगाने की व्यवस्था करने का आदेश तो दे रही है, लेकिन उस आदेश का पालन भी हो रहा है या नहीं, इसकी खैर-खबर लेने की जरूरत नहीं समझ रही.
इतना ही नहीं रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली  नहीं लगाने वालों पर एनएमसी 1000 रुपए जुर्माना भी लगा सकती है, लेकिन इसे भी अभी क्रियान्वित नहीं किया जा सका है.  

-कल्याण कुमार सिन्हा

9 जुलाई 2010 को लोकमत समाचार में प्रकाशित

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