Sunday 17 June 2012

नई भूमिका में प्रणब मुखर्जी

नई भूमिका में प्रणब मुखर्जी
चैन की सांस ले रहे उद्योग जगत एवं..

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने से उद्योग जगत चैन की सांस लेता नजर आ रहा है. विलक्षण प्रतिभा, अद्वितीय स्मरण शक्ति और उत्कृष्ट कांग्रेसी के रूप में मशहूर श्री मुखर्जी संप्रग सरकार के संकटमोचक माने जाते रहे हैं. वर्ष 2008 की वैश्विक मंदी के समय देश की अर्थव्यवस्था को संभालने में बेहतर भूमिका निभाने वाले श्री मुखर्जी की दुनिया भर में प्रशंसा हो चुकी है. लेकिन आश्चर्य है कि न केवल उद्योग जगत ऐसे संतोष जता रहा है, मानो वित्त मंत्रलय को मुक्तिमिल रही हो, बल्कि कांग्रेस का एक वर्ग भी पार्टी को उनसे मिल रही मुक्ति से खुश है. पार्टी में ही नहीं अन्य दलों में भी प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे सुयोग्य समङो जाने वाले श्री मुखर्जी के साथ विडंबना है कि कोई उन्हें इस पद पर देखना नहीं चाहता था. यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सलाहकार भी इस पक्ष में कभी नहीं रहे कि उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनाया जाए. अपनी इस महत्वाकांक्षा के कारण तो उन्हें कांग्रेस छोड़ने पर भी बाध्य होना पड़ा था.

इधर अब तो देश की अर्थव्यवस्था में आ रही गिरावट के लिए प्रधानमंत्री के नजदीकी सूत्र समेत सरकार के कुछ मंत्री भी श्री मुखर्जी को ही जिम्मेदार मानने का संकेत देने लगे थे. जून के प्रथम सप्ताह में देश के विभिन्न समाचारपत्रों में छपे देश के मूर्धन्य पत्रकार कुलदीप नैयर भी अपने स्तंभ (कॉलम) में बताने से नहीं चूके कि पिछले वार्षिक बजट में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सुझाव तक को श्री मुखर्जी ने ठुकरा दिया था. यह भी संकेत दिए जाने लगे थे कि आर्थिक और वित्तीय मामलों में ही नहीं, अन्य मामलों में भी श्री मुखर्जी अन्य मंत्रियों की तरह प्रधानमंत्री के सुझावों को नजरंदाज करने से नहीं चूकते थे. उनका यह रुतबा पार्टी और सरकार दोनों के लिए बहुत ही भारी पड़ने लगा था. सूत्र बताते हैं कि राष्ट्रपति पद के लिए पार्टी के पास दूसरा कोई विकल्प न होने के कारण श्री मुखर्जी को रायसीना हिल्स का रास्ता दिखा कर पार्टी और सरकार दोनों ने अपना उद्धार करने की कोशिश की है.
कांग्रेस पार्टी और सरकार के लिए अपरिहार्य बन चुके श्री मुखर्जी के रुतबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विभिन्न नीतिगत एवं प्रशासनिक विषयों पर विचार के लिए सरकार की ओर से गठित 37 मंत्रियों के समूह (जीओएम) में 24 की अध्यक्षता प्रणब ही कर रहे थे.
इधर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा वित्त मंत्रलय का कार्यभार अपने हाथों में लेने की चर्चा के बीच उद्योग जगत में भी नई उम्मीदें जगी हैं. कारोबारी जगत यह भी मानता है कि यदि प्रधानमंत्री स्वयं वित्त मंत्रलय को अपने हाथ में रखते हैं तो बाजार में इससे विश्वास बढ़ेगा. उनकी राय है कि फिलहाल देश में बहुब्रांड खुदरा कारोबार, बीमा क्षेत्र में सुधारों को मजबूती से आगे बढ़ाने और नए कंपनी विधेयक और वस्तु एवं सेवाकर यानी जीएसटी को भी जल्द से जल्द अमल में लाने की जरूरत है.
वे इस बात से चिंतित हैं कि अर्थव्यवस्था की सुस्ती, औद्योगिक उत्पादन में ठहराव, निर्यात के मोर्चे पर घटती वृद्धि, हिचकोले खाते शेयर बाजार और गिरते रुपए के साथ साथ जिद्दी महंगाई जैसी तमाम चुनौतियां देश के सामने हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था की जीडीपी वृद्धि दर मार्च, 2012 को समाप्त हुई तिमाही में घटकर 5.3 प्रतिशत पर आ गई, जो बीते साल की इसी अवधि में 9.2 प्रतिशत थी. वर्तमान में यूरोक्षेत्र के संकट से दुनिया एक बार फिर मंदी का सामना कर रही है और भारत पर भी इसका असर दिखना शुरू हो गया है.
देश के शीर्ष वाणिज्य एवं उद्योग संगठनों में वाणिज्य एवं उद्योग मंडल
एसोचैमके महासचिव डी.एस. रावत के अनुसार, नए वित्त मंत्री के समक्ष कठिन चुनौतियां हैं, यूरोक्षेत्र सहित विभिन्न वैश्विक घटनाक्रमों का भारत पर असर नहीं पड़े, नए वित्त मंत्री को यह देखना होगा.शेयर बाजार विशेषज्ञ और दिल्ली शेयर बाजार के पूर्व अध्यक्ष अशोक अग्रवाल के अनुसार, प्रधानमंत्री खुद वित्त मंत्रलय का कार्यभार संभालें, इसको लेकर बाजार में सकारात्मक सोच है.पीएचडी वाणिज्य एवं उद्योग मंडल के अर्थशास्त्री एस.पी. शर्मा का मत है कि फिलहाल देश की अर्थव्यवस्था को उबारने की जरूरत है. उनके अनुसार, अर्थव्यवस्था में देशी-विदेशी निवेशकों के विश्वास को फिर से कायम करने की जरूरत है. निवेशकों का यह विश्वास आज बिल्कुल निचले स्तर पर पहुंच गया है.भारतीय कंपनी सचिव संस्थान (आईसीएसआई) के अध्यक्ष निसार अहमद ने कहा कि अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए इस समय दूसरी पीढ़ी के सुधारों को आगे बढ़ाने की नितांत आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि सरकार को महत्वपूर्ण सुधारों से जुड़े कम से कम चार-पांच मुद्दों पर सभी दलों को विश्वास में लेकर आम सहमति बनाकर सुधारों को आगे बढ़ाना चाहिए. इससे पूरी दुनिया में निवेशकों के बीच सकारात्मक संकेत जाएगा.
नए वित्त मंत्री के बारे में अहमद का स्पष्ट मत है कि मौजूदा परिस्थितियों में वित्त मंत्री का पद काफी अहम् हो गया है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यदि खुद वित्त मंत्रलय का कामकाज देखते हैं तो इससे काफी मदद मिल सकती है. देश में आर्थिक सुधारों की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी.
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को सभी काफी सुलझा व्यक्ति भी मानते हैं. वे यह भी मानते हैं कि वर्ष 2008 की वैश्विक मंदी के समय मुखर्जी ने देश की अर्थव्यवस्था को संभालने में बेहतर भूमिका निभाई. वे इस बात को भूले नहीं हैं कि मुखर्जी ने उस समय घरेलू उद्योगों को उत्पाद एवं अन्य करों में छूट देकर राहत पैकेज दिया था.
अब देखना है राष्ट्रपति भवन में सक्रिय राजनीति से दूर रह कर श्री मुखर्जी की भूमिका कितनी सार्थक हो सकती है.
कल्याण कुमार सिन्हा

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