Sunday 24 June 2012

मगरमच्छों, कछुओं की तरह अंडे देते थे डायनासोर

इंदौर : मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी में बिखरे जुरासिक खजानेको ढूंढ़ निकालने वाले एक खोजकर्ता समूह ने दावा किया है कि मगरमच्छों और कछुओं के अंडे देने का तरीका सरीसृप वर्ग के अपने पुरखोंयानी डायनासोरों से काफी हद तक मेल खाता है. मंगल पंचायतन परिषदके प्रमुख विशाल वर्मा ने आज कहा, नर्मदा घाटी में आज से कम से कम साढ़े छह करोड़ साल पहले पाए जाने वाले डायनासोर सरीसृप वर्ग के ठंडे रक्त वाले जीव थे. ये विशाल जानवर मगरमच्छ और कछुए जैसे सरीसृपों की तरह ही अंडे दिया करते थे.उन्होंने कहा कि जिस तरह मगरमच्छ और कछुए अपने जलीय आवासों से निकलकर जलाशयों और समुद्र के रेतीले किनारों पर अंडे देते हैं, उसी तरह डायनासोर भी अपनी रिहाइश की थलीय जगहों से अलग ऐसे ही तटों पर अंडे देने पहुंचते थे.
वर्मा ने कहा,
वर्मा ने बताया कि अंडे देते वक्त डायनासोर ऐसी जगह चुनते थे, जो परभक्षियों की पहुंच से दूर और मौसम की उथल-पुथल से महफूज होती थी.
डायनासोरों की कई प्रजातियों की मादाएं नदियों और सरोवरों के रेतीले तटों पर अंडे देने के लिए लंबी यात्रएं भी करती थीं.उन्होंने बताया कि डायनासोर आम तौर पर किसी बड़े जलाशय या नदी के किनारे रेतीली और रवेदार मिट्टी में अंडे देते थे. अंडा देने की जगह डायनासोर और उनके समूह के आकार के मुताबिक विस्तृत होती थी.
वर्मा के मुताबिक उन्हें इन घोंसलों में डायनासोर के सौ से ज्यादा अंडों के जीवाश्म मिले थे. इनमें सबसे दुर्लभ घोंसला वह है, जिसमें इस विलुप्त जीव के करीब 15 अंडों के जीवाश्म एक साथ मिले थे.
उन्होंने बताया कि वह अब तक डायनासोर के 150 से ज्यादा अंडांे के जीवाश्म ढूंढ़ चुके हैं. बहरहाल, आज यह यकीन करना बेहद मुश्किल है कि वर्तमान नर्मदा घाटी में कभी डायनासोर की सल्तनत थी.
उन्होंने बताया कि नर्मदा घाटी में इस विलुप्त प्राणी के जो जीवाश्मीकृत अंडे अब तक मिले हैं, उनमें से करीब 90 प्रतिशत अंडे सौरोपॉड परिवार के डायनासोराें के हैं.
वह बताते हैं कि इस परिवार के डायनासोर शाकाहारी थे और उनकी ऊंचाई 20 से 30 फुट होती थी. ये डायनासोर तत्कालीन रेतीले इलाकों में दूरस्थ इलाकों से अंडे देने आते थे.
वर्मा ने कहा,
वर्मा के मुताबिक भारतीय डायनासोर के जीवाश्मीकृत अंडे और घोंसले मिलने का क्षेत्र करीब 10,000 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इन अंडों की आयु 6. 5 करोड़ वर्ष से 6- 8 करोड़ वर्ष आंकी गई है.
उन्होंने बताया कि डायनासोर के जीवाश्मीकृत अंडे और घोंसले खासकर उन जगहों पर पाए गए हैं, जहां सहस्त्रब्दियों पहले ज्वालामुखी विस्फोट हुआ करते थे.
मंगल पंचायतन परिषदने तब पहली बार दुनिया भर का ध्यान खींचा था, जब इस खोजकर्ता समूह ने वर्ष 2007 के दौरान नजदीकी धार जिले में डायनासोर के करीब 25 घोंसलों के रूप में बेशकीमती जुरासिक खजाने की चाबी ढूंढ़ निकाली थी.हमारे पास इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि चट्टानों की जिन परतों में डायनासोर के अंडों के जीवाश्म दबे मिले हैं, वे बार-बार बाढ़ से प्रभावित होती रही हैं. इन जीवाश्मीकृत अंडों के आस-पास छोटे एवं गोल पत्थरों और बजरी का मिलना यह साबित करता है कि डायनासोर के घांेसलों के पास बाढ़ का पानी घुस आया करता था.उन्होंने बताया कि डायनोसोर के अंडे, मिट्टी और गाद से ढंके होने के कारण शिकारियों एवं दूसरे दुश्मनों से छिपे रहते थे और इन पर बैक्टीरिया का भी असर नहीं हो पाता था.

No comments:

Post a Comment