Sunday 24 June 2012

कबीर-नानक की मिलनस्थली पर बन रहा दुनिया का अजूबा


अमरकंटक : अमरकंटक घने जंगलों, नदियों, मंदिरों और गुफाओं का पर्याय एक रमणीक स्थल मात्र नहीं, बल्कि अध्यात्म व साहित्य साधना की मिलनस्थली भी है, जहां कबीर व गुरु नानक के बीच संवाद हुआ. जहां घने जंगलों के दरख्तों से गिरे सूखे पत्ताें की खड़खड़ तथा नर्मदा, सोन नदी के उद्गम से निकलने वाले पानी की कलकल ध्वनि में आध्यात्मिक संगीत के सुर सुने जा सकते हैं. जहां घने जंगलों में हठयोगी बाहरी दुनिया से बेखबर जहां-तहां धूनी रमाए देखे जा सकते हैं. इसी पवित्र नगरी में दुनिया के एक अनूठे मंदिर का निर्माण हो रहा है.
जैन तपस्वी संत आचार्य विद्यासागर की प्रेरणा से अमरकंटक में अष्टधातु की दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति प्रतिष्ठित की जा रही है.
दुनिया में अपनी तरह की अनूठी तथा एक रिकार्ड कायम करने वाली मूर्ति के भव्य मंदिर का निर्माण इस समय जोर-शोर से चल रहा है. लगभग दस फुट ऊंची प्रथम जैन र्तीथकर भगवान आदिनाथ की यह मूर्ति 28,000 किलोग्राम वजनी है तथा इसे अष्टधातु के ही 24000 किलोग्राम वजनी कमल सिंहासन पर प्रतिष्ठित किया गया है. मंदिर को गुजरात के मशहूर अक्षरधाम मंदिर की स्थापत्य शैली के अनुरूप बनाया जा रहा है और इसके स्थापत्य की विशेषता है कि इसे बिना इस्पात तथा सीमेंट के बनाया जा रहा है, ताकि वक्त की थपेड़ें इसका क्षय नहीं कर सकें और यह सदियों तक अक्षय बना रहे. इस विशाल मंदिर की ऊंचाई 144 फुट, लंबाई 424 फुट तथा चौड़ाई का दायरा 111 फुट है
न्यासी प्रमोद जैन के अनुसार इस मंदिर के निर्माण पर लगभग 25-30 करोड़ रुपया व्यय होगा तथा संभवत: अगले वर्ष के मध्य तक (2013) इसकी प्राण प्रतिष्ठा हो जाएगी. ऐसी संभावना है कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह आचार्य श्री और उनके संघ के सानिध्य में होगा.
एक जैन श्रद्धालु के अनुसार मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के संधिस्थल पर बसे इस क्षेत्र में विहार करते वक्त आचार्य भी यहां र्जे-र्जे में बसी आध्यात्मिकता से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने यहां मंदिर बनवाने का निश्चय कर लिया और अब दुनिया का एक अनूठा आध्यात्मिक व धार्मिक केंद्र यहां निर्मित हो रहा है और घने जंगलों में मंदिर के घंटों के स्वर यहां के अद्भुत माहौल को और भी अद्भुत बना देंगे.
गहराती शाम में निर्माणाधीन मंदिर से कुछ दूरी पर घने जंगलों में कबीर चबूतरे पर धूनी जमाए साधुओं द्वारा गाए जा रहे कबीर के भजन माहौल को और भी विस्मयकारी कर देते हैं. कबीर चौरा, चबूतरों पर कबीर व गुरुनानक के चित्र शायद उसी संवाद को जीते से लगते हैं.

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